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dialysis and types of dialysis

डायलिसिस का कार्य और डायलिसिस के प्रकार

January 17, 2024 by Dr. Ravi Bhadania

जब दोनों किडनी कार्य नहीं कर रहे हों, उस स्थिति में किडनी का कार्य कृत्रिम विधि से करने की पद्धति को डायलिसिस कहते हैं। डायलिसिस एक प्रक्रिया है जो किडनी की खराबी के कारण शरीर में एकत्रित अपशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त पानी को कृत्रिम रूप से बाहर निकालता है। संपूर्ण किडनी फेल्योर या एण्ड स्टेज किडनी डिजीज एवं एक्यूट किडनी इंज्यूरी के मरीजों के लिए डायलिसिस एक जीवन रक्षक तकनीक है।

डायलिसिस के क्या कार्य हैं?

  • खून में अनावश्यक उत्सर्जी पदार्थ जैसे कि, क्रिएटिनिन, यूरिया को दूर करके खून का शुद्धीकरण करना।
  • शरीर में जमा हुए ज्यादा पानी को निकालकर द्रवों को शरीर में योग्य मात्रा में बनाये रखना ।
  • शरीर के क्षारों जैसे सोडियम, पोटैशियम इत्यादि को उचित मात्रा में प्रत्थापित करना ।
  • शरीर में जमा हुई एसिड (अम्ल) की अधिक मात्रा को कम करते हुए उचित मात्रा बनाए रखना ।
  • डायलिसिस एक सामान्य किडनी के सभी कार्यों की जगह नहीं लें सकता है जैसे एरिथ्रोनाइटिन होर्मोन ( erythropoietin hormone) का उत्पादन जो हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाए रखने में आवश्यक होता है।

डायलिसिस की जरूरत कब पड़ती है?

जब किडनी की कार्य क्षमता 80-90% तक घट जाती है तो यह स्थिति एण्ड स्टेज किडनी डिजीज (ESKD) की होती है। इसमें अपशिष्ट उत्पाद और द्रव शरीर से बाहर नहीं निकल पाते हैं। विषाक्त पदार्थ जैसे – क्रीएटिनिन और अन्य नाइट्रोजन अपशिष्ट उत्पादों के रूप में शरीर में जमा होने से मतली उल्टी, थकान सूजन और सांस फूलने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से यूरीमिया कहते हैं। ऐसे समय में सामान्य चिकित्सा प्रबंधन अपर्याप्त हो जाता है और मरीज को डायलिसिस शुरू करने की आवश्यकता होती है। क्या डायलिसिस करने से किडनी फिर से काम करने लगती है? नहीं क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीजों ने डायलिसिस करने के बाद भी, किडनी फिर से काम नहीं करती है। ऐसे मरीजों में डायलिसिस किडनी के कार्य का विकल्प हैं और तबियत ठीक रखने के लिए नियमित रूप से हमेशा के लिये डायलिसिस कराना जरूरी है। लेकिन एक्यूट किडनी फेल्योर के मरीजों में थोड़े समय के लिए ही डायलिसिस कराने की जरूरत होती है ऐसे मरीजों की किडनी कुछ दिन बाद फिर से पूरी तरह काम करने लगती है और बाद में उन्हें डायलिसिस की या दवाई लेने की जरूरत नहीं रहती है।

डायलिसिस के दो प्रकार

  1. हीमोडायलिसिस (Haemodialysis): इस प्रकार के डायलिसिस में डायलिसिस मशीन विशेष प्रकार के क्षारयुक्त द्रव (Dialysate) की मदद से कृत्रिन किडनी (Dialyser) में खून को शुद्ध करता है।
  2. पेरीटोनियल डायलिसिस (Peritonial Dialysis): इस प्रकार के डायलिसिस में पेट में एक खास प्रकार का केथेटर नली (P. D. Catheter) डालकर, विशेष प्रकार के क्षारयुक्त द्रव (P. D. Fluid) की मदद से, शरीर में जमा हुए अनावश्यक पदार्थ दूर कर शुद्धीकरण किया जाता है। इस प्रकार के डायलिसिस में मशीन की आवश्यकता नहीं होती है।

डायलिसिस में खून का शुद्धीकरण किस सिद्धांत पर आधारित है?

हीमोडायलिसिस में कृत्रिम किडनी की कृत्रिम झिल्ली और पेरीटोनियल डायलिसिस में पेट का पेरीटोनियम अर्धनारगम्य झिल्ली (सेमी परमिएबल मेम्ब्रेन) जैसा काम करती है। झिल्ली के बारीक छिद्रों से छोटे पदार्थ जैसे पानी क्षार तथा अनावश्यक यूरिया, क्रिएटिनिन जैसे पदार्थ निकल जाते हैं। परन्तु शरीर के लिए आवश्यक बड़े पदार्थ जैसे खून के कण नहीं निकल सकते हैं।  डायलिसिस की क्रिया में अर्धपारगम्य झिल्ली (सेमीपरमिएबल मेम्ब्रेन) के एक तरफ डायलिसिस का द्रव होता है और दूसरी तरफ शरीर का खून होता है। ऑस्मोसिस और डियूजन के सिद्धांत के अनुसार खून के अनावश्यक पदार्थ और अतिरिक्त पानी, खून से डायलिसिस द्रव में होते हुए शरीर से बाहर निकलता है। किडनी फेल्योर की वजह से सोडियम, पाटैशियम तथा एसिड की मात्रा में परिवर्तन को ठीक करने का महत्वपूर्ण कार्य भी इस प्रक्रिया के दौरान होता है।

किस मरीज को हीमोडायलिसिस और किस मरीज को पेरीटोनियल डायलिसिस से उपचार किया जाना चाहिए?

क्रोनिक किडनी फेल्योर के उपचार में दोनों प्रकार के डायलिसिस असरकारक होते हैं। मरीज को दोनों प्रकार के डायलिसिस के लाभ-हानि की जानकारी देने के बाद मरीज की आर्थिक स्थिति, तबियत के विभिन्न पहलु घर से हीमोडायलिसिस यूनिट की दूरी इत्यादि मसलों पर विचार करने के बाद किस प्रकार का डायलिसिस करना है, करने के बाद, किस प्रकार का डायलिसिस करना है यह तय किया जाता है। भारत ने अधिकतर जगहों पर हीमोडायलिसिस कम खर्च में, सरलता से तथा सुगमता से उपलब्ध है। इसी कारण हीमोडायलिसिस कराने वाले मरीजों की संख्या भारत में ज्यादा है। डायलिसिस कराने वाले नरीजों को भी आहार में परहेज रखना जरूरी होता है।  मरीज को डायलिसिस शुरू करने के बाद भी आहार में संतुलित मात्रा में पानी एवं पेय पदार्थ लेना, कम नमक खाना एवं पोटैशियम और फॉस्फोरस न बढ़ने देने की हिदायतें दी जाती हैं लेकिन सिर्फ दवाई से उपचार करानेवाले मरीजों की तुलना में डायलिसिस से उपचार करानेवाले मरीजों के आहार में जयादा छूट दी जाती है और ज्यादा प्रोटीन और विटामिनयुक्त आहार लेने की सलाह दी जाती है।

इस तरह के विषयों के बारे में अधिक जानने के लिए संपर्क करें: Alfa Kidney Care
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