पेरीटोनियल डायलिसिस (PD) क्या है?
पेट के अंदर आँतों तथा अंगों को उनके स्थान पर जकड़कर रखनेवाली झिल्ली को पेरीटोनियल कहा जाता है। यह झिल्ली सेमीपरमीएबल यानी चलनी की तरह होती है। इस झिल्ली की मदद से होनेवाले खून के शुद्धीकरण की क्रिया को पेरीटोनियल डायलिसिस कहते हैं। आगे की चर्चा में पेरीटोनियल डायलिसिस को हम संक्षिप्त नाम पी. डी. से जानेंगे। यह व्यापक रूप से प्रभावी और स्वीकृत उपचार है। घर पर डायलिसिस करने का यह सबसे आम तरीका है।
पेरीटोनियल डायलिसिस (PD) के कितने प्रकार होते हैं?
- आई. पी. डी. इन्टरमीटेन्ट पेरीटोनियल डायलिसिस:
अस्पताल में भर्ती हुए मरीज को जब कम समय के लिए डायलिसिस की जरूरत पड़े तब यह डायलिसिस किया जाता है। आई. पी. डी. में मरीज को बिना बेहोश किए, नाभि के नीचे पेट के भाग को खास दवाई से सुन्न किया जाता है। इस जगह से एक कई छेदवाली मोटी नली को पेट में डालकर, खास प्रकार के द्रव (Peritionial Dialysis Fluid) की मदद से खून के कचरे को दूर किया जाता है। सामान्य तौर पर यह डायलिसिस की प्रक्रिया 36 घंटों तक चलती है और इस दौरान 30 से 40 लिटर प्रवाही का उपयोग शुद्धिकरण के लिये किया जाता है। इस प्रकार का डायलिसिस हर तीन से पाँच दिन में कराना पड़ता है। इस डायलिसिस में मरीज को बिस्तर पर बिना करवट लिए सीधा सोना पड़ता है। इस वजह से यह डायलिसिस लम्बे समय के लिए अनुकूल नहीं है।
- कन्टीन्युअस एम्ब्युलेटरी पेरीटोनियल डायालिसिस (CAPD ):
- सी. – कन्टीन्युअस, जिसमें डायलिसिस की क्रिया निरंतर चालू रहती है।
- ए. – एम्ब्यूलेटरी, इस क्रिया के दौरान मरीज घूम फिर सकता है और साधारण काम भी कर सकता है।
- पी. डी. – पेरीटोनियल डायलिसिस की यह प्रक्रिया है।
सी. ए. पी. डी. में मरीज अपने घर में रहकर स्वयं बिना मशीन के डायलिसिस कर सकता हैं दुनिया के
विकसति देशों में क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीज ज्यादातर इस प्रकार का डायलिसिस अपनाते हैं।
- ए. पी. डी. या सी. सी. पी. डी. :
(कन्टीन्युअस साइक्लिक पेरीटोनियल डायालिसिस) एक प्रकार का पेरीटोनियल डायलिसिस है जो घर में किया जाता है। इसमें एक स्वचलित साइक्लर मशीन का उपयोग किया जाता है। हर चक्र 1-2 घंटे का होता है और हर इलाज में 4-5 बार पी. डी. द्रव का आदान-प्रदान किया जाता है। यह इलाज कुल 8-10 घंटे का होता है और उस दौरान किया जाता है जब मरीज सोता है। सुबह मशीन को निकाल दिया जाता है। 2-3 लीटर पी. डी. द्रव को पेट के अंदर छोड़ किया जाता है जिसे दूसरे इलाज के पहले बाहर निकाला जाता है। सी. सी. पी. डी. / ए. पी. डी. रोगियों के लिए फायदेमंद इलाज है क्योंकि यह रोगियों को दिन के दौरान नियमित गतिविधियों को करने की अनुमति देता है। चूंकि पी. डी. बैग को दिन में सिर्फ एक बार ही कैथेटर से लगाया और निकाला जाता है. इसलिए यह प्रक्रिया काफी हद तक सुविधाजनक है। इस प्रक्रिया में बेरिटोनाइटिस (पेट में गयाद का होना) होने का खतरा कम होता है। हालांकि ए. पी. डी. को महंगा इलाज कहा जा सकता है और कुछ रोगियों के लिए एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है।
सी. ए. पी. डी. की प्रक्रिया :
इस प्रकार के डायलिसिस में अनेकों छेदों वाली नली (CAPD Catheter) को पेट में नाभि के नीचे छोटा चीरा लगाकर रख जाता है। सी. ए. पी. डी. कैथेटर इस प्रक्रिया के शुरू करने से 10 से 14 दिन पहले पेट के अंदर डाला जाता है। सी. ए. पी. डी. के मरीजों के लिए पी. डी. कैथेटर जीवन रेखा है जैसे ए. बी. फिस्च्युला हीमोडायलिसिस के मरीजों के लिए है। यह नली सिलिकॉन जैसे विशेष पदार्थ की बनी होती है यह नरम और लचीली होती है एवं पेट अथवा आँतों के अंगों को नुकसान पहुँचाए बिना पेट में आराम से रहती है। इस नली द्वारा दिन में तीन से चार बार दो लीटर डायलिसिस द्रव पेट में डाला जाता है और निश्चित घण्टों के बाद उस द्रव को बाहर निकाला जाता है । डायलिसिस के लिए प्लास्टिक की नरम थैली में रखा दो लिटर द्रव पेट में डालने के बाद खाली थैली कमर में पटटे के साथ बांधकर आराम से घूमा फिरा जा सकता है।
सी. ए. पी. डी. में पी. डी. द्रव क्या है?
पी. डी. द्रव ( dialysate) एक जीवाणु रहित घोल है। जिसमें खनिज और ग्लूकोज (डेक्सट्रोज) होता है। डायालाइजेट का ग्लूकोज शरीर से तरल पदार्थ को हटाने में सहायता करता है। ग्लूकोज की मात्रा के आधार पर भारत में तीन प्रकार के डायालाइजेट उपब्लध होते है (1.5%. 2.5% और 4.5%)। हर मरीज के लिए ग्लूकोज का प्रतिशत अलग होता है। यह निर्भर करता है की मरीज के शरीर से कितनी मात्रा में तरल पदार्थ निकालने की आवश्यकता है। कुछ देशों में अलग तरह का पी. डी. द्वय मिलता है जिसमें ग्लूकोज के बदले आइकोडेक्सट्रिन होती है। वो घोल जिसमें आइकोडेक्सट्रिन होती है वह शरीर के तरल पदार्थ को और धीमे तरीके से बाहर निकालता है। ऐसे द्रव मधुमेह और अधिक वजन वाले मरीजों के लिए उपयोग में लाया जाता है। सी. ए. पी. डी. के बैग विभिन्न प्रकार की द्रव की मात्राओं में उपलब्ध है (1000-2500ml) ।
सी. ए. पी. डी. के मरीज को आहार में क्या मुख्य परिवर्तन करने की सलाह दी जाती है?
सी. ए. पी. डी. के की इस क्रिया में पेट से बाहर निकलते द्रव के साथ शरीर का प्रोटीन भी निकल जाता है। इसलिए नियमित रूप से ज्यादा प्रोटीन वाला आहार लेना स्वस्थ रहने के लिए अति आवश्यक है । मरीज कितना नमक, पौटेशियमयुक्त पदार्थ एवं पानी ले सकता है उसकी मात्रा डॉक्टर खून का दबाव, शरीर में सूजन लेबोरेटरी परीक्षण के रिपोर्ट को देखकर बताते हैं । की मात्रा और सी. ए. पी. डी. के मरीज को नर्यन्त पोषण की आवश्यकता होती है। इनकी आहार तालिका हीमोडायलिसिस के मरीजों की आहार तालिका से भिन्न होती है।
चिकित्सक या आहार विशेष पेरीटोनियल डायलिसिस में निरंतर प्रोटीन की हानि के कारण प्रोटीन कुपोषण से बचने के लिए आहार में प्रोटीन का बढ़ाने की सिफारिश कर सकते हैं। कुपोषण से बचने के लिए अधिक कैलोरी के सेवन के साथ वजन की बढ़ोत्तरी पर अंकुश लगाना चाहिए। पी. डी. घोल में ग्लूकोज होती है जो सी. ए. पी. डी. के मरीजों में लगातार अतिरिक्त कार्बोहाइट बढ़ाती है। हालांकि इसमें भी मरीज में नमक और द्रव प्रतिबंधित किया गया है। पर हीमोडायलिसिस के नरीजों की तुलना में पानी और खाने में कम परहेज होता है। आहार में पौटेशियम और फोस्फेट प्रतिबंधित रहता है।
सी. ए. पी. डी. के उपचार के समय मरीजों में होनेवाले मुख्य खतरे क्या हैं?
सी. ए. पी. डी. के संभावित मुख्य खतरों में पेरीटोनियल (पेट में मवाद का होना), सी. ए. पी. डी. कॅथेटर जहाँ से बाहर निकलता है वहाँ संक्रमण (Exit Site Infection) होना, दस्त का होना इत्यादि । पेट में दर्द होना, बुखार आना और पेट से बाहर निकलने वाला द्रव यदि गंदा हो, तो यह पेरीटोनाइटिस का संकेत है। पेरिटोनाइटिस (पेट में मवाद का होना) से बचने के लिए सी. ए. पी. डी. को कड़ी कीटाणुनाशक सावधानियों के तहत किया जाना चाहिए। कब्ज से बचना चाहिए। पेरिटोनाइटिस के इलाज में व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक चयन करने के लिए बाहर निकलने वाले पी. डी.. द्रव (effluent) का कल्चर कराना चाहिए और कुछ नरीजों में पी. डी. कैथेटर को हटा देना चाहिए। इसके अलावा दूसरी समस्या जैसे पेट फूलना एवं द्रव अधिभार के कारण पेट की मासपेशियों कमजोर हो जाती हैं हर्निया, द्रव अधिभार, अंडकोष में सूजन, कब्ज, पीठ दर्द, वजन में वृद्धि और पेट से तरल पदार्थ का रिसाव जैसी अनेक समस्याएँ सी. ए. पी. डी. में हो सकती है।
सी. ए. पी. डी. के मुख्य फायदे और नुकसान क्या है?
फायदे
- डायलिसिस के लिये मरीज को अस्पताल जाने की जरूरी नहीं रहती है। मरीज खुद ही यह डायलिसिस घर में कर सकता है। पी. डी. की यह प्रक्रिया मरीज द्वारा कार्यस्थल और यात्रा के दौरान भी की जा सकती है। मरीज स्वयं सी. ए. पी. डी. (CAPD) कर सकता है। इसके लिए उसे हीमोडायलिसिस मशीन, हीमोडायलिसिस करने में सक्षम नर्स या तकनीशियन वा परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता नहीं होती है। डायालिसिस के दौरान मरीज दूसरे कार्य भी कर सकता है।
- पानी और खाने में कम परहेज करना पड़ता है।
- यह क्रिया बिना मशीन के होती है। सूई लगने की पीड़ा से मरीज को मुक्ति मिलती है।
- उच्च रक्तचाप सुजन खून का फीकाप्न (रक्ताल्पता) इत्यादि का उपचार सरलता से कराया जा सकता है।
नुकसान
- वर्तमान समय में यह इलाज ज्यादा महँगा है।
- इसमें पेरीटोनाइटिस होने का खतरा है।
- हर दिन (बगैर चूक लिए तीन से चार बार सावधानी से द्रव बदलना पड़ता है। जिसकी जिम्मेदारी मरीज के परिवारवालों की होती है। इस प्रकार हर दिन, सही समय पर, सावधानी से सी. ए. पी. डी. करना एक मानसिक तनाव उत्पन्न करता है।
- पी. डी. घोल शर्करा (ग्लूकोज) के अवशोषण के कारण वजन में वृद्धि और रक्त में शक्कर की मात्रा बढ़ सकती है।
- पेट में हमेंशा के लिये कैथेटर और द्रव रहना साधारण समस्या है।
- सी. ए. पी. डी. के लिये द्रव की वजनदार थैली को संभालना और उसके साथ परिचालन अनुकूल नहीं होता है।
सी. ए. पी. डी. के मरीज को डायालिसिस नर्स या डॉक्टर का संपर्क तुरंत कब करना चाहिए?
निम्नलिखित किसी भी लक्षण के दिखने पर सी. ए. पी. डी. के मरीज को डायलिसिस गर्स या डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
- पेट में दर्द, बुखार या ठंड लगना ।
- सी. ए. पी. डी. कैथेटर जहाँ से बाहर निकलता है वहां दर्द, मवाद, लाली और सूजन होना ।
- पी. डी. के तरल पदार्थ या जल निकासी में कठिनाई पैदा होने पर ।
- कब्ज होने पर ।
- दर्द, शरीर में ऐंठन और चक्र आने पर ।
- वजन में अप्रत्याशित वृद्धि अत्यधिक सूजन, हॉफना और उच्च रक्तचाप के होने पर इसका कारण तरल पदार्थ का अत्यधिक होना हो सकता है।