किडनी प्रत्यारोपण के ऑपरेशन में क्या किया जाता है?
सर्जरी से पहले, किडनी प्राप्तकर्ता और किडनी दाता दोनों का चिकित्सकीय, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक मूल्यांकन किया जाता है। यह दोनों की फिटनेस और सुरक्षा सुनिश्चित के लिए किया जाता है। (यह जीवित किडनी दाता द्वारा प्रत्यारोपण में होता है) उचित ब्लड ग्रुप के मिलान के अलावा दोनों के खून के श्वेतरक्त कणों में उपस्थित पदार्थ एच एल. ए. (Human Leucocytes Antigen ) की मात्रा में साम्यता और टिस्यु क्रास मैचिंग की जाँच से किडनी प्रत्यारोपण होने या न होने को सुनिश्चित करता है।
- ऑपरेशन से पहले मरीज के रिश्तेदार और किडनीदाता के रिश्तेदारों की सहमति ली जाती है। किडनी प्रत्यारोपण का ऑपरेशन एक टीम करती है। नेफ्रोलॉजिस्ट (किडनी फिजिशियन), यूरोलॉजिस्ट (किडनी के सर्जन) पैथोलॉजिस्ट और अन्य प्रशिक्षण प्राप्त सहायकों के संयुक्त प्रयास से यह ऑपरेशन होता है। यह ऑपरेशन यूरोलॉजिस्ट करता है।
- उक्त प्रक्रिया के बाद सहमिती पत्र को ध्यान से पढ़ें एवं प्राप्तकर्ता और दाता दोनों की सहमिती प्राप्त करें (यह जीवित किडनी प्रत्यारोपण में आवश्यक है)
- किडनीदाता और किडनी पाने वाले मरीज दोनों का ऑपरेशन एक साथ किया जाता है।
- किडनीदाता की एक किडनी को ऑपरेशन से निकालने के बाद उसे एक विशेष प्रकार के ठंडे द्रव से पूरी तरह साफ किया जाता हैं। बाद में उसे क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीज के पेट के आगेवाले भाग दाहिनी तरफ नीचे की ओर (पेडू में) लगाया जाता है।
- सामान्यतः मरीज की जराब हुई किडनी नहीं निकाली जाती है। परन्तु यदि खराब हुई किडनी शरीर को नुकसान पहुँचा रही हो, तो ऐसे में अपवादस्वरूप उस किडनी को निकालना जरूरी होता है।
- यह ऑपरेशन साधारणतः तीन से चार घंटों तक चलता है।
- जब किडनी को दान करने वाला एक जीवित व्यक्ति है, तब प्रतिरोपित किडनी आमतौर पर तुरंत कार्य करना शुरू कर देती है। पर जब किडनी का स्त्रोत एक मृतक है (कैडेवर किडनी दाता) तब प्रतिरोपित किड़नी को कार्य शुरू करने में कुछ दिन या हफ्ते लग सकते हैं जिस किडनी प्राप्तकर्ता की प्रतिरोपित किडनी अपने कार्य को करने में विलम्ब करती है तब मरीज को डायलिसिस की तब तक आवश्यकता होती है जब तक किडनी कार्य पूर्ण रूप से न करने लगे।
- प्रत्यारोपण के बाद, नेफ्रोलॉजिस्ट किडनी प्राप्तकर्ता की दवाओं की निगरानी और मरीज के स्वास्थ्य एवं किडनी की कार्यक्षमता पर कड़ी नजर रखता है। जीवितकिडनी दाता की भी नियमित रूप से स्वास्थ्य संबंधित जाँच और निगरानी रखनी चाहिए ।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद के संभावित खतरे
किडनी प्रत्यारोपण के बाद संभावित प्रमुख खतरे नई किडनी का शरीर द्वारा अस्वीकार होना (किडनी रिजेक्शन) संक्रमण होना, ऑपरेशन संबंधित खतरों का भय होना और दवा का उल्टा असर होना है।
किडनी प्रत्यारोपण अन्य ऑपरेशनों से किस प्रकार भिन्न है?
सामान्य तौर पर मरीज को अन्य ऑपरेशन कराने के बाद सिर्फ सात से दस दिनों तक निर्धारित दवाई लेनी पड़ती है। परन्तु किडनी प्रत्यारोपण के ऑपरेशन के बाद किडनी रिजेक्शन रोकने के लिए आजीवन दवाई लेनी जरूरी होती है।
किडनी रिजेक्शन क्या है?
हम जानते हैं कि संक्रमण के समय शरीर के श्वेतकणों में रोग प्रतिरोधी पदार्थ (एन्टीबॉडीज) बनते हैं ये एन्टीबॉडीज जीवाणु से संघर्ष करके उसे नष्ट कर देते हैं। इसी प्रकार नई लगाई गई किडनी अन्य व्यक्ति की होने के कारण मरीज के श्वेतकणों से बने एन्टीबॉडीज इस किडनी को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इस नुकसान की मात्रा अधिक होने पर नई लिखनी पूरी तरह खराब हो सकती है। इसे ही मेडिकल की भाषा में किडनी रिजेक्शन कहते हैं।
किडनी रिजेक्शन कब होता है उसका क्या असर पड़ता है?
किडनी की अस्वीकृति प्रत्यारोपण के बाद किसी भी समय हो सकती है । प्रायः यह पहले छः माह में होती है। अस्वीकृति की गंभीरता हर रोगी में अलग होती है। प्रायः किडनी की अस्वीकृति होना किसी विशेष कारण से नहीं होता है और इसका इलाज उचित इम्युनोसप्रेसेन्ट चिकित्सा द्वारा हो जाता है। पर कुछ रोगियों में किडनी की अस्वीकृति होना गंभीर हो सकता है और जो अंत में किडनी को नष्ट कर सकता है।
किडनी रिजेक्शन के बाद रिजेक्शन की संभावना को कम करने के लिए किस प्रकार की दवाई उपयोगी होती है?
- शरीर की प्रतिरोधक शक्ति के कारण नई लगाई किडनी के अस्वीकार (रिजेक्शन) होने की संभावना रहती है।
- अगर दवा के सेवन से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को कम किया जाता है, तो रिजेक्शन का भय नहीं रहता है, परन्तु मरीज को जानलेवा संक्रमण का भय बना रहता है।
- किडनी प्रत्यारोपण के बाद विशेष प्रकार की दवाई का इस्तेमाल होता है, जो किडनी रिजेक्शन को रोकने का मुख्य काम करती है। एवं मरीज की रोग से लड़ने की क्षमता बनाए रखती है। (Selective Imunosuppression) |
- इस प्रकार की दवा को इन्यूनोस्प्रेसेन्ट (Immunosuppressants) कहा जाता है प्रेजनीसोलोन, एजाथायोप्रीन, सायक्लोस्पोरीन और एम. एम. एफ. और टेक्रोलिमस इस प्रकार की मुख्य दवाईयाँ है ।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवा कब लेनी जरूरी होती है?
बहुत ही महँगी यह दवाईयाँ किडनी प्रत्यारोपण के बाद मरीज को आजीवन लेनी पड़ती है। शुरू में दवाई की मात्रा ( और खर्च भी) ज्यादा लगती है, जो समय के साथ धीरे-धीरे कम होते जाती है।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद क्या अन्य कोई दवा लेने की जरूरत पड़ती है?
हाँ, जरूरत के अनुसार किडनी प्रत्यारोपण कराने के बाद मरीजों द्वारा ली जानेवाली दवाईयों में उच्च रक्तचाप की दवा, कैल्सियम, विटामिन्स इत्यादि दवाईयाँ हैं अन्य कोई बीमारी के लिए दवा की जरूरत पड़े तो नये डॉक्टर से दवा लेने से पहले उसे यह बताना जरूरी होता है कि मरीज का किडनी प्रत्यारोपण हुआ है और हाल में वह कौन-कौन सी दवाई ले रहा है।
क्या होता है अगर प्रत्यारोपित किडनी काम करना बंद कर दे ?
जब प्रत्यारोपित किडनी काम करना बंद कर देती तब मरीज को दूसरा प्रत्यारोपण या डायलिसिस करवाना पड़ता है।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद की जरूरी बातें
नई किडनी की देखभाल के लिए महत्वपूर्ण बातें सफल किडनी प्रत्यारोपण मरीज को एक नया सामान्य, स्वस्थ और स्वतंत्र जीवन प्रदान करती है छिखनी प्राप्तकर्ता को प्रतिरोपित किडनी की रक्षा के लिए एक अनुशासित जीवन शैली व्यतीत करना चाहिए और संक्रमण रोकने की सावधानियों का पालन करना चाहिए। रोगी को नियमित रूप से निर्धारित दवाओं को लेना अती आवश्यक है। किडनी प्रत्यारोपण के बाद किडनी पाने वाले मरीज को दी जानेवाली महत्वपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है:
- डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित दवा लेना अत्यंत जरूरी है। यदि दवा अनियमित रूप से ली जाए, तो नई किडनी के खराब होने का खतरा रहता है।
- हमेशा दवाओं को एक रुचि तैयार रखें और पर्याप्त स्टॉक बनाए रखें। कभी भी ओवर डी काऊंटर दवाएँ और हर्बल उपचार न करें।
- प्रारंभ में मरीज का ब्लडप्रेशर, पेशाब की मात्रा और शरीर के वजन को नियमित रूप से नापकर एक डायरी में लिखना जरूरी होता है।
- डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित रूप से लेबोरेटरी में जाकर जाँच करानी चाहिए और फिर नेकोलॉजिस्ट से नियमित चेकअप कराना जरूरी है।
- खून और पेशाब की जाँच विश्वासपात्र लेबोरेटरी में ही करानी चाहिए। रिपोर्ट में यदि कोई बड़ा परिवर्तन दिखाई दे तो लेबोरेटरी बदलने के बजाय नेफ्रोलॉजिस्ट को तुरन्त सूचित करना आवश्यक है ।
- बुखार आना, पेट में दर्द होना, पेशाब कम आना, अचानक शरीर के वजन में वृद्धि होना या कोई अन्य तकलीफ होने पर तुरन्त नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क करना जरूरी है।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद संक्रमण से बचने के लिए अवश्यक बातें
- प्रत्यारोपण के बाद आहार पर कम प्रतिबंध रहते हैं भोजन समय पर करें। एक संतुलित आहार जिसमें पर्याप्त कैलोरी, प्रोटीन हो वह लेना चाहिए। भोजन जिसमें नमक, शक्कर और वसा की मात्रा कम हो परन्तु पर्याप्त मात्रा में फाइबर हो जिससे वजन न बढ़े ऐसा आहार लेना चाहिए। निर्जलीकरण से बचने के लिए पानी की मात्रा भी पर्याप्त लेनी चाहिए। रोगी को दिन में तीन लीटर पानी या ज्यादा की आवश्यकता होती है।
- नियमित रूप से व्यायाम करें और वजन पर नियंत्रण रखें। भारी शारीरक गतिविधियों और निकट संपर्क के खेलों से बचें। उदाहरण फुटबॉल, मुक्केबाजी आदि ।
- चिकित्सक की सलाह से प्रत्यारोपण के दो माह के पश्चात् सुरक्षित यौन गतिविधियों को फिर से शुरू किया जा सकता है।
- धूम्रपान एवं शराब सेवन से बचें।
- शुरू-शुरू में संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छ जीवाणुरहित मास्क पहनना जरूरी है, जिसे नियमित रूप से बदलना चाहिए।
- रोज साफ पानी से नहाने के बाद धूप में सुखाए गए एवं प्रेस किए कपड़े पहनने चाहिये।
- घर को पूरी तरह से स्वच्छ रखना चाहिए।
- बीमार व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। प्रदूषणवाली, भीड़-भाड़वाली जगह जैसे मेला वगैरह में जाने से बचना चाहिए।
- हमेशा उबला हुआ पानी ठंडा कर और छानकर पीना चाहिए ।
- खाने के पहले, दवाई लेने के पहले और बाथरूम के इस्तेमाल करने के बाद रोगी को अपने हाथ साबुन और पानी से अवश्य धोने चाहिए।
- बाहर का बना भोजन नहीं खाना चाहिए। घर में ताजा बना भोजन साफ बरतनों में लेकर खाना चाहिए।
- खाने पीने से संबंधित सभी हिदायतों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए
- दांतों को दिन में दो बार साफ करे और दांतों की अच्छी तरह से देखभाल करनी चाहिए। किसी भी खरोंच, चोट, घाव या छिलने की उपेक्षा न करें। तुरंत घाव को साफ पानी व साबुन से साफ कर मलहम पट्टी करें।