Alfa Kidney Care
Alfa Kidney Care Alfa Kidney Care

Akhbar Nagar, Ahmedabad, Gujarat 380081, India

Mon – Sat : - 10:30 PM - 7:00 PM

Sun : - Closed

Alfa Kidney Care Alfa Kidney Care
  • Home
  • About Us
  • Dr. Ravi Bhadania
  • Services
    • Chronic Kidney Disease Treatment
    • Kidney Biopsy
    • Dialysis & Care
    • Kidney Friendly Diet
    • Kidney Stones
    • Urinary Tract Infection
    • Kidney Transplantation
    • Immunosuppressive Therapy
    • Know Your Kidney
    • Optimized Management
    • Counselling Regarding
    • Precise Diagnosis and Treatment
  • Procedure
  • Media Gallery
  • Our Blogs
  • Contact Us
  • Make an Appointment
Make an Appointment

Blog

  1. Alfa Kidney Care
  2. Blogs
  3. कुछ सामान्य किडनी के रोग
कुछ सामान्य किडनी के रोग

कुछ सामान्य किडनी के रोग

February 28, 2024 by Dr. Ravi Bhadania

किडनी के रोगों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है :

  • मेडिकल रोग (औषधि संबंधी): किडनी के रोग जैसे किडनी का फेल होना (Kidney Failure) मूत्रमार्ग में संक्रमण, नेफ्रोटिक सिंड्रोम आदि का उपचार किडनी रोग विशेषज्ञ नेफ्रोलॉजिस्ट दवा द्वारा करते हैं। किडनी फेल होने के गंभीर मरीजों को डायालिसिस और किडनी प्रत्यारोपण जैसे इलाज की आवश्यकता पड़ सकती है।
  • सर्जिकल रोग (ऑपरेशन संबंधी ): इस तरह के किडनी रोगों का उपचार यूरोलॉजिस्ट करते हैं, जैसे पथरी रोग, प्रोस्टेट की समस्या और मूत्रमार्ग का कैन्सर आदि । इस उपचार में ऑपरेशन, दूरबीन से जाँच (एन्डोस्कोपी) व लेसर से पथरी को तोड़ना ( लीथोट्रीप्सी) इत्यादि शामिल हैं।

नेफ्रोलॉजिस्ट और यूरोलॉजिस्ट में क्या अंतर है?

नेफ्रोलॉजिस्ट किडनी रोगों के उपचार के विशेषज्ञ हैं, जो औषधि द्वारा किडनी का उपचार करते हैं। डायालिसिस द्वारा खून को शुद्धिकरण करते हैं एवं किडनी प्रत्यारोपण के पूर्व और पश्चात् दवाई करते है। जबकि यूरोलॉजिस्ट किडनी के शल्य रोगों के उपचार के विशेषज्ञ होते हैं। ये सामान्यत: ऑपरेशन एवं दूरबीन से ऑपरेशन कर पथरी, ट्यूमर (गाँठ), किडनी का कैंसर या प्रोस्टेट के कैंसर आदि का उपचार करते हैं।

किडनी फेल्योर

किडनी फेल्योर का मतलब है, दोनों किडनी की कार्यक्षमता में कमी होना। खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा में वृद्धि किडनी फेल्योर का संकेत देती है।

किडनी फेल्योर के दो प्रकार होते हैं:

  • एक्यूट किडनी फेल्योर
  • क्रोनिक किडनी फेल्योर

एक्यूट किडनी फेल्योर

किडनी की कार्यक्षमता में अचानक आई कमी या नुकसान को किडनी की विफलता या एक्यूट रीनल फेल्योर या एक्यूट किडनी इंज्यूरी ए. – के. आई कहते हैं । कई मरीज जो ए. के. आई से ग्रस्त हैं उनमें पेशाब की मात्रा कम हो जाती है। एक्यूट किडनी फेल्योर होने के मुख्य कारण दस्त-उल्टी का होना, मलेरिया, खून का दबाव अचानक कम हो जाना, सेपसिस होना, कुछ दवाओं का सेवन जैसे दर्द निवारक दवाएँ (NSAIDS) आदि है। उचित दवा और आवश्यकता होने पर डायालिसिस के उपचार से इस प्रकार खराब हुई दोनों किडनी पुनः संर्पूर्ण तरह से काम करने लगती है ।

क्रोनिक किडनी फेल्योर

क्रोनिक किडनी फेल्योर, कई महीनों और सालों से किडनी की कार्यक्षमता में जो क्रमिक एवं धीमी गति से अपरिवर्तनीय नुकसान होता है उसे क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) – सी. के. डी. कहते हैं। इसमें किडनी की कार्य क्षमता धीरे-धीरे लगातार कम होती जाती है। लम्बी अवधि के बाद, किडनी लगभग पूरी तरह से काम करना बंद कर देती हैं। बीमारी की यह दशा जो जीवन के लिए खतरनाक हो उसे एण्ड स्टेज किडनी डिजीज (ESKD) या ई. इस. आर. डी. (ESRD) भी कहते हैं।

सी. के. डी. एक चुपचाप बढ़ने वाली खतरनाक बीमारी है और अक्सर किसी का ध्यान इस तरफ नहीं जाता है। सी. के. डी. के प्रारंभिक दौर में अत्यंत कम और गैर विशिष्ट लक्षण होते हैं। शरीर में सूजन आना, भूख कम लगना, उलटी आना, जी मिचलाना, कमजोरी महसूस होना, कम आयु में उच्च रक्तचाप होना इत्यादि इस रोग के मुख्य लक्षण है। क्रोनिक किडनी फेल्योर होने के दो मुख्य कारण डायाबिटीज (मधुमेह) और उच्च रक्तचाप हैं।

पेशाब की जाँच के दौरान उसमें प्रोटीन की उपस्थिति, रक्त में उच्च क्रीएटिनिन और सोनोग्राफी करने पर छोटी एवं संकुचित किडनी सी. के. डी. के महत्वपूर्ण संकेत है। सीरम क्रीएटिनिन की मात्रा किडनी की बीमारी दर्शाता है और समय के साथ उसकी मात्रा में वृष्टि द होती जाती है।

सी. के. डी. के प्रारंभिक दौर में, रोगियों का उचित दवाओं और खाने में पूरी तरह परहेज द्वारा उपचार किया जाता है। इस बीमारी को पूर्णतः ठीक करने का कोई विशेष इलाज नहीं है। इस बात को ध्यान में रखना चाहिए की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है किडनी की कार्यक्षमता वैसे-वैसे कम होने लगती है। अनुवांशिक बीमारी जैसे – डायाबिटीज और उच्च रक्तचाप अगर अनियंत्रित रहते हैं तो इसके असर से तेजी से किडनी की कार्यक्षमता में गिरावट और नुकसान हो सकता है।

इस उपचार का उदेश्य इस रोग के बढ़ने की गति को धीमा करने, जटिलताओं को रोकने और लम्बी अवधि के लिए मरीज का स्वास्थ्य अच्छा रखना है।

जब बीमारी (ESKD) की अवस्था बढ़ती है तो किडनी की 10% कार्य करने की क्षमता कम हो जाती हैं। किडनी अधिक खराब होने पर सामान्यत: क्रीएटिनिन 8-10 मिलीग्राम प्रतिशत से अधिक बढ़ जाए, तब दवा और परहेज के बावजूद भी मरीज की हालत में सुधार नही होता है। ऐसी स्थिति में उपचार के दो विकल्प डायालिसिस (खून का डायालिसिस या पेट का डायालिसिस) और किडनी प्रत्यारोपण ही हैं।

डायलिसिस

डायालिसिस एक छानने की प्रक्रिया है जो शरीर से अपशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त तरल पदार्थों को निकालती है। जब किडनी अपने कार्य को पूर्णरूप से करने में असमर्थ हो जाती हैं। तब शरीर में अनावश्यक उत्सर्जी पदार्थों एवं पानी की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। डायालिसिस, सी. के. डी. का उपचार नहीं है किन्तु एक सहारा है। जब सी. के. डी. अंतिम चरण पर होता है तो रोगी को आजीवन नियमित डायालिसिस के उपचार की आवश्यकता होती है। अगर किडनी प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक हो चूका है तब मरीज को इसकी आवश्यकता नहीं होती है।

डायालिसिस दो प्रकार से किया जाता है।

  • हीमोडायलिसिस
  • पेरीटोनियल डायालिसिस

हीमोडायलिसिस

(खून की मशीनों द्वारा सफाई ) – यह क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीजों के लिए सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला डायालिसिस है। इस प्रकार के डायालिसिस में हीमोडायलिसिस मशीन की मदद से कृत्रिम किडनी (डायलाइजर) में खून शुद्ध किया जाता है। ए. वी. फिस्च्युला अथवा डबल ल्यूमेन केथेटर की मदद से शरीर में से शुद्ध करने के लिए खून निकाला जाता है। मशीन की मदद से खून शुद्ध होकर पुनः शरीर में वापस भेज दिया जाता है, जिसमें हीमोडायलिसिस मशीन ( HD Machine ) की सहायता से अपशिष्ट उत्पादों, अधिक तरल पदार्थ और नमक को रक्त से हटाया जाता है।

तबियत तंदुरुस्त रखने के लिए मरीज को नियमित रूप से सप्ताह में दो से तीन बार हीमोडायलिसिस कराना जरूरी है। हीमोडायलिसिस के दौरान मरीज पलंग पर आराम करते हुए सामान्य कार्य कर सकता है, जैसे – नाश्ता करना, टीवी देखना इत्यादि । नियमित रूप से डायालिसिस कराने पर मरीज सामान्य जीवन जी सकता है । सिर्फ डायालिसिस कराने के लिए उन्हें अस्पताल की हीमोडायलिसिस यूनिट में आना पड़ता है, जहाँ चार घंटे में यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है। वर्तमान समय में, हीमोडायलिसिस कराने वाले मरीजों की संख्या पेट के डायालिसिस (सी. ए. पी. डी.) के मरीजों से ज्यादा है। क्रोनिक किडनी फेल्योर (सी. के. डी.) के उपचार का पूर्णकालिक विकल्प किडनी प्रत्यारोपण ही है ।

पेरीटोनियल डायलिसिस

पेट का डायलिसिस – (सी. ए. पी. डी.) इस पेरीटोनियल डायलिसिस में मरीज अपने घर पर ही मशीन के बिना डायलिसिस कर सकता है। सी. ए. पी. डी. में खास तरह की नरम एवं कई छेदों वाली नी (केथेटर ) सामान्य ऑपरेशन द्वारा पेट में डाली जाती है। इस नली के द्वारा विशेष द्रव (P.D. Fluid) पेट में डाला जाता है। कई घंटों के बाद जब इस द्रव को इसी नली से बाहर निकाला जाता है, तब इस द्रव के साथ शरीर का अनावश्यक कचरा भी बाहर निकल जाता है। इस क्रिया में हीमोडायलिसिस से अधिक खर्च एवं पेट में संक्रमण का खतरा बना रहता है। सी.ए.पी. डी. की यह दो मुख्य कमियाँ हैं।

पेशाब का संक्रमण

पेशाब में जलन होना, बार-बार पेशाब आना, पेडू में दर्द होना, बुखार आना इत्यादि पेशाब के संक्रमण के लक्षण हैं। पेशाब की जाँच में मवाद का होना रोग का निदान करता है। पेशाब के संक्रमण के कई रोगी उपयुक्त एंटीबायोटिक से उपचार होने पर पूर्णत: अच्छे हो सकते हैं। बच्चों में इस रोग के उपचार के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता रहती है। बच्चों में पेशाब के संक्रमण के निदान में विलंब एवं अनुचित उपचार के कारण किडनी को गंभीर नुकसान (जो ठीक न हो सके) पहुँचने का भय रहता है। यदि मरीज में बार-बार पेशाब का संक्रमण हो, तो मरीज को मूत्रमार्ग में अवरोध, पथरी, मूत्रमार्ग के टी. बी. आदि के निदान के लिए जाँच कराना आवश्यक है। बच्चों में पेशाब का संक्रमण बार-बार होने का मुख्य कारण वी. यू. आर. (Vesicouretral Reflux ) है । वी. यू. आर. एक जन्मजात असामान्यता है। इसमें पेशाब, मूत्राशय से उल्टा मूत्रवाहिनी में किडनी की ओर जाता हैं क्योंकि मूत्राशय और मूत्रवाहिनी के बीच के वाल्व में जन्मजात क्षति होती है। इसमें कुछ वर्षों में किडनी खराब हो सकती है।

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम

किडनी का यह रोग भी अन्य उम्र की तुलना में बच्चों में अधिक पाया जाता है। इस रोग का मुख्य लक्षण शरीर में बार-बार सूजन का आना है। इस रोग में पेशाब में प्रोटीन का आना, खून परीक्षण की रिपोर्ट में प्रोटीन का कम होना और कोलेस्ट्रॉल का बढ़ जाना होता है। इस बीमारी में खून का दबाव नहीं बढ़ता है और किडनी खराब होने की संभावना बिल्कुल कम होती है।

यह बीमारी दवा लेने से ठीक हो जाती है । परन्तु बार-बार रोग का उभरना, साथ ही शरीर में सूजन का आना नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की विशेषता है। इस प्रकार इस रोग का लम्बे समय (कई वर्षों) तक चलना बच्चे और परिवार के लिये धैर्य की कसौटी के समान है।

पथरी की बीमारी

पथरी एक महत्वपूर्ण किडनी रोग है। सामान्यतः पथरी किडनी, मूत्रवाहिनी और मूत्राशय में होने वाली बीमारी है। इस रोग के मुख्य लक्षणों में पेट में असहनीय दर्द होना, उल्टी- उबकाई आना, पेशाब लाल रंग का होना इत्यादि है। इस बीमारी में कई मरीजों को पथरी होते हुए भी दर्द नहीं होता है, जिसे “साइलेन्ट स्टोन” कहते हैं । पथरी के निदान के लिए पेट का एक्सरे एवं सोनोग्राफी सबसे महत्वपूर्ण जाँच है। छोटी पथरी अधिक पानी पीने से अपने आप प्राकृतिक रूप से निकल जाती है।

यदि पथरी के कारण बार-बार ज्यादा दर्द हो रहा हो, बार-बार पेशाब में संक्रमण, खून अथवा मवाद आ रहा हो और पथरी से मूत्रमार्ग में अवरोध होने की वजह से किडनी को नुकसान होने का भय हो, तो उसे निकाल देना चाहिए।

मरीज में सामान्यतः पथरी निकालने के लिए प्रचलित पध्दतियों में लीथोट्रीप्सी, दूरबीन (पी. सी. एन. एल.), सिस्टोकोपी और यूरेटरोस्कोपी द्वारा उपचार और ऑपरेशन द्वारा पथरी निकालना इत्यादि है। 50 80% मरीजों में पथरी प्राकृतिक रूप से फिर हो सकती है। इसके लिए ज्यादा पानी पीना, आहार में भी परहेज रखना और समयानुसार डॉक्टर से जाँच कराना जरूरी और लाभदायक है।

प्रोस्टेट की बीमारी बी. पी. एच.

प्रोस्टेट ग्रंथी केवल पुरुषों में होती है। यह मूत्राशय के नीचे स्थित होती है। मूत्राशय से पेशाब बाहर निकालने वाली नली मूत्रनलिका के शुरू का भाग प्रोस्टेट ग्रंथि के बीच से निकलता है। 50 साल की उम्र के बाद प्रोस्टेट ग्रंथी का आकर बढ़ने लगता है। बड़ी उम्र के पुरुषों में प्रोस्टेट का आकार बढ़ने के कारण मूत्रनलिका पर दबाव आता है और मरीज को पेशाब करने में तकलीफ होती है, इसे बी. पी. एच. (बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी) कहते है ।

रात को कई बार पेशाब करने उठना, पेशाब की धार पतली आना, जोर लगाने पर पेशाब का आना आदि बी. पी. एच. के संकेत हैं। मलाशय में एक उंगली डालकर परीक्षण और अल्ट्रासाउंड दो प्रमुख विधियाँ हैं, जिससे बी. पी. एच. का निदान हो सकता है। रोगियों की एक बड़ी संख्या का जिनमें हल्के और मध्यम बी. पी. एच. के लक्षण होते हैं, उनका दवाओं से ही लम्बी अवधि के लिए प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है। गंभीर लक्षण और बहुत बड़ी प्रोटेस्ट होने पर कई रोगियों में प्रोस्टेट ग्रंथी को दूरबीन या एन्डोस्कोपिक विधि से हटाने की आवश्यकता हो सकती है।

किडनी के बारे में अधिक जानने के लिए, संपर्क करें: Alfa Kidney Care

  • Share
  • Tweet
  • Linkedin

Post navigation

Previous
Previous post:

बच्चों में किडनी और मूत्रमार्ग का संक्रमण

Next
Next post:

केडेवर किडनी प्रत्यारोपण: जानिए क्या है, कैसे काम करता है और कैसे आवश्यक है

Related Posts
बच्चों का रात में बिस्तर गीला होना – कारण, और उपाय
बच्चों का रात में बिस्तर गीला होना – कारण, और उपाय
March 20, 2024 by Dr. Ravi Bhadania

बच्चा जब छोटा हो, तब रात में उसका बिस्तर गीला हो जाना स्वाभाविक है । परन्तु बच्चे की उम्र बढ़ने...

पेरीटोनियल डायलिसिस के बारे में कुछ ज़रूरी जानकारी
पेरीटोनियल डायलिसिस के बारे में कुछ ज़रूरी जानकारी
December 4, 2023 by Dr. Ravi Bhadania

पेरीटोनियल डायलिसिस (PD) क्या है? पेट के अंदर आँतों तथा अंगों को उनके स्थान पर जकड़कर रखनेवाली झिल्ली को पेरीटोनियल...

Leave a Comment Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Add Comment *

Name *

Email *

Website

Categories
  • Blogs (140)
  • Uncategorized (1)
Popular Posts
  • Gestational Kidney Disease
    Gestational Kidney Disease: Risks and Management in Pregnancy

    September 16, 2025

  • How Sleep Impacts Your Kidneys
    How Sleep Impacts Your Kidneys: What You Didn’t Know

    September 4, 2025

  • What is Kidney Stent Surgery
    What is Kidney Stent Surgery?

    August 21, 2025

Alfa Kidney care

Alfa Kidney Care is one of the leading kidney specialty and nephrology hospitals in Ahmedabad.

Our Location

707-710, Centrum Heights, Akhbarnagar Circle, Nava Vadaj, Ahmedabad, Gujarat 380013, India

E: rpbhadania@gmail.com

+91 94849 93617

Opening Hours

Mon - Sat - 10:30 PM - 7:00 PM

Sun - Closed

Emergency Cases
+91 94849 93617

© 2023 Alfa Kidney Care. All Rights Reserved