हम जानते हैं कि किडनी शरीर के अधिक पानी, नमक और अन्य क्षार को पेशाब द्वारा दूर करके शरीर में इन पदार्थों का संतुलन बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है किडनी फेल्योर में यह नियंत्रण का कार्य ठीक तरह से नहीं होता है। परिणामस्वरूप किडनी फेल्योर के मरीजों में पानी, नमक, पोटैशियमयुक्त खाध्य पदार्थ आदि सामान्य मात्र में लेने पर भी कई बार गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में कम कार्यक्षम किडनी को अधिक बोझ से बचाने के लिए तथा शरीर में पानी, नमक और क्षारयुक्त पदार्थ कि उचित मात्रा बनाये रखने के लिये आहार में जरूरी परिवर्तन करना आवश्यक है क्रोनिक | किडनी फेल्योर के सफल उपचार में आहार के इस महत्व को ध्यान में रखकर यहाँ आहार संबंधी विस्तृत जानकारी और मार्गदर्शन देना उचित समझा गया है। लेकिन आपको अपने डॉक्टर के परामर्श अनुसार आहार निश्चित करना अनिवार्य है।
सी. के. डी. रोगियों में आहार चिकित्सा के क्या लाभ है?
- क्रोनिक किडनी डिजीज की प्रगति को धीमा करना और स्थगित करना ।
- डायलिसिस की आवश्यकता को लम्बे समय तक टालना ।
- रक्त में अतिरिक्त यूरिया के जहरीले प्रभाव को कम करना ।
- उच्च पोषण की स्थिति बनाए रखना और शरीर के द्रव्य के नुकसान को रोकना ।
- तरल और इलेक्ट्रोलाइट की गड़बड़ी का खतरा कम करना ।
- हृदय रोग का खतरा कम करना ।
आहार योजना के सिद्धान्त
क्रोनिक किडनी फेल्योर के अधिकांश मरीजों को सामान्यतः निम्नलिखित आहार लेने कि सलाह दी जाती है
- पानी और तरल पदार्थ निर्देशानुसार काम मात्रा में लेना ।
- आहार में सोडियम पोटैशियम और फॉस्फोरस कि मात्रा कम होनी चाहिए।
- प्रोटीन कि मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए। सामान्यतः 0.8 से 1.0 ग्राम / किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर प्रोटीन प्रतिदिन लेने कि सलाह दी जाती है।
- जो मरीज पहले से ही डायालिसिस पर हों उन्हें प्रोटीन की मात्रा में वृध्दि की आवश्यकता होती है (1.0-1.2 gm/kg body wt/day)। इस प्रतिक्रिया के दौरान जो प्रोटीन का नुकसान होता है, उसकी भरपाई करने के लिए यह आवश्यक है।
- कार्बोहाइड्रेट पूरी मात्रा में (35-40 कैलोरी/किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर प्रतिदिन) लेने कि सलाह दी जाती हैं। घी, तेल, मक्खन और चर्बीवाले आहार कम मात्रा में लेने कि सलाह दी जाती है।
- विटामिन्स की आपूर्ति करें और पर्याप्त मात्रा में आवश्यक तत्वों की पूर्ति करें। उच्च मात्रा का फाइबर आहार लेने की सलाह भी दी जाती है।
उच्च कैलोरी का सेवन
शरीर के तापमान, विकास, दैनिक गतिविधियों और शरीर के वजन को बनाये रखने के लिए पर्याप्त कैलोरी की आवश्यकता होती है।
मुख्यतः कैलोरी की आपूर्ति वसा और कार्बोहाइड्रेट से की जाती है।
सामान्यतः 35-40 कैलोरी / किलोग्राम की आवश्यकता क्रोनिक किडनी डिजीज (सी. के. डी.) के मरीज को प्रतिदिन होती हैं। अगर कैलोरी का सेवन अपर्याप्त हो तो शरीर में कैलोरी प्रदान करने के लिए शरीर द्वारा प्रोटीन का इस्तेमाल किया जाता है। प्रोटीन के इस विघटन से हानिकारक प्रभाव हो सकता है जैसे कुपोषण और अपशिष्ट उत्पादों का अधिक से अधिक उत्पादन होना। इसलिए सी. के. डी. के रोगियों के लिए कैलोरी की गणना करना महत्वपूर्ण है, साथ ही वर्तमान वजन को ध्यान में रखना चाहिए।
- कार्बोहाइड्रेट:- कार्बोहाइड्रेट शरीर के लिए कैलोरी का प्राथमिक स्त्रोत है। गेहूँ, दाल, चावल, आलू, फल, सब्जी, शक्कर, मधु, केक, बिस्कुट, मिठाई और पेय पदार्थ से कार्बोहाइड्रेट मिलता है इसलिए मधुमेह और मोटापे से ग्रस्त मरीज को कार्बोहाइड्रेट का सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए। अच्छा हो यदि मरीज चोकर युक्त गेहूँ, बिना पोलिश किया गया चावल जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट का उपयोग करे क्योंकि इससे फाइबर (रेशयुक्त) आहार मिलता है। यह शरीर के लिए लाभदायक होता है। कार्बोहाइड्रेट के लिए इन खाघ पदार्थों का एक बड़ा हिस्सा आहार में होना चाहिए। विशेष रूप से मधुमेह के रोगियों में अन्य सभी साधारण चीनी युक्त पदार्थों का कुल 20% से अधिक का सेवन नहीं होना चाहिए। जिन मरीजों में मधुमेह नहीं हैं वे अपने आहार में कैलोरी की मात्रा उन प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों से ले सकते हैं जिसमें कार्बोहाइड्रेट है, जैसे फल, केक, कुकीज, जेली, मधु सीमित मात्रा में चाकलेट, बादाम, केला, मिठाई आदि ।
- फैट/वसा:- वसा शरीर के लिए कैलोरी का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तुलना में वसा दुगनी मात्रा में कैलोरी प्रदान करती है। असंतृप्त या अच्छी वसा (Unsaturated ), के कुछ स्त्रोत है जैतून के तेल, मूंगफली का तेल, कनोला तेल, कुसुम तेल, मछली और बादाम का तेल आदि । संतृप्त या बुरी वसा के कुछ स्त्रोत है लाल मांस, अंडा, दूध, मक्खन, गहि, पनीर, और चर्बी की तुलना में बेहतर है ! सी. के. डी. के मरीज को अपने आहार में संतृप्त या बुरी वसा और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रखनी चाहिए क्योंकि यह हृदय रोग पैदा कर सकती है।
- असंतृप्त वसा (Unsaturated):- इस दौरान मोनोअनसेचुरेटेड और पॉली अनसेचुरेटेड के ध्यान में रखना जरुरी है ज्यादा मात्रा में ओमेगा 6 पॉलीअनसेचुरेटेड अनुपात को फैटी एसिड (वसा अम्ल) लेने और ज्यादा ओमेगा 6 ओमेगा 3 का अनुपात भी हानिकारक होता है, जबकि कम मात्रा का ओमेगा 6 : ओमेगा 3 का अनुपात लाभकारी प्रभाव डालता है। एकल तेल के उपयोग के बजाय अलग-अलग वनस्पति तेल का उपयोग करने से उस उद्देश्य को प्राप्त करना संभव है। आलू के चिप्स, डोनट्स, व्यवसाहिक तौर पर तैयार कुकीज और केक जैसे वसा के खाद्य पदार्थ संभावित हानिकारक है और उनका कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए या उपयोग में लाने से बचना चाहिए ।
प्रोटीन की मात्रा को सीमित रखना
शरीर के उतकों की मरम्मत और रख रखाव के लिए प्रोटीन आवश्यक है। यह संक्रमण से लड़ने और घाव भरने में भी सहायता करता है। सी. के. डी. के रोगी जो डायालिसिस पर नहीं हैं उन्हें 0.8 gm/kg शरीर के वजन/दिन के हिसाब से प्रोटीन लेना चाहिए। यह किडनी के कार्यों में गिरावट की दर और किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत को आगे टाल देता है। प्रोटीन पर तीव्र प्रतिबंध से बचना चाहिए, क्योंकि इससे कुपोषण का खतरा हो सकता है। सी. के. डी. के मरीज में अपर्याप्त भूख का होना आम बात है। अपर्याप्त भूख और प्रोटीन सख्त प्रतिबंध, दोनों के कारण रोगी में कुपोषण, वजन घटना, शरीर में उर्जा की कमी और शरीर में प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो जाती है, जो भविष्य में मृत्यु के खतरे को बढ़ा सकता है। वे प्रोटीन जिनमें जैविक मूल्यों की मात्रा ज्यादा होती हैं जैसे पशु प्रोटीन (मांस, अंडा, मछली) ऐसे खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दी जाती है। सी. के. डी. मरीज को उच्च प्रोटीन आहार जैसे अटकिन्स आहार (Atkins Diet) से परहेज करना चाहिए। इसी तरह उन प्रोटीन की खुराक एवं वे दवाइयाँ जो मांसपेशियों के विकास के लिए इस्तेमाल की जाती हैं उनसे परहेज करना चाहिए और उनका सेवन चिकित्सक या आहार विशेषज्ञ की सलाह पर ही करना चाहिए। किन्तु यदि एक बार मरीज डायलिसिस पर चला जाता हैं तो प्रोटीन की मात्रा में 1.0-1.2 ग्राम प्रतिकिलो शरीर का वजन प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ा देना चाहिए जिससे इस प्रक्रिया के दौरान जो प्रोटीन में आती है उसकी भरपाई हो सके ।
किडनी फेल्योर के मरीजों को पानी या अन्य पेय पदार्थ (द्रव) लेने में सावधानी क्यों जरूरी है?
किडनी की कार्यक्षमता कम होने के साथ-साथ अधिकतर मरीजों में पेशाब की मात्रा भी कम होने लगती है। इस अवस्था में यदि पानी का खुलकर प्रयोग किया जाये तो शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने से सूजन और साँस लेने की तकलीफ हो सकती है, जो ज्यादा बढ़ने से प्राणघातक भी हो सकती है।
शरीर में पानी की मात्रा बढ़ गयी है, यह कैसे जाना जा सकता है ?
सूजन आना, पेट फूलना, साँस चढ़ना, खून का दबाव बढ़ना, कम समय में वजन में वृद्धि होना इत्यादि लक्षणों की मदद से शरीर में पानी की मात्रा बढ़ गई है, यह जाना जा सकता है।
किडनी फेल्योर के मरीजों को कितना पानी लेना चाहिए?
किडनी फेल्योर के मरीजों को कितना पानी लेना है. यह मरीज को होनेवाली पेशाब और शरीर में आई सूजन को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है जिस मरीज को पेशाब की पूरी मात्रा में होता हो एवं शरीर में सूजन भी नहीं आ रही हो, तो ऐसे मरीजों को उनकी इच्छा के अनुसार पानी पेय पदार्थ लेने की छूट दी जाती है। जिन मरीजों को पेशाब कम मात्रा में होता हो, साथ ही शरीर में सूजन भी आ रही हो, तो ऐसे मरीजों को पानी कम लेने की सलाह दी जाती है। सामान्यतः 24 घंटे में होनेवाले कुल पेशाब की मात्रा के बाराबर लेने की छूट देने से सूजन को बढ़ने से रोका जा सकता है।
सी. के. डी. के रोगियों को क्यों अपने दैनिक वजन का रिकार्ड बना कर रखना चाहिए?
रोगियों को अपने शरीर के तरल पदार्थ की मात्रा पर नजर रखने के लिए और तरल पदार्थ के लाभ या नुकसान का पता लगाने के लिए अपने दैनिक वजन का एक रिकार्ड रखना चाहिए। जब तरल पदार्थ के सेवन के बारे में दिए गए निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाता है तब शरीर का वजन लगातार सही बना रहता है। अचानक वजन में वृध्दि रोगी को चेतावनी है की द्रव पर अधिक प्रतिबंध की आवश्यकता है। आमतौर पर वजन का घटना तरल पदार्थ पर प्रतिबंध और अधिक पेशाब निष्कासन का संयुक्त प्रभाव होता है।
पानी कम मात्रा में लेने के लिए सहायक उपाय
- प्रतिदिन वजन नापना: निर्देशानुसार कम पानी लेने से, वजन स्थिर रहता है यदि वजन में अचानक वृद्धि होने लगे, तो यह दर्शाता है कि पानी ज्यादा मात्रा में लिया गया है। ऐसे मरीजों को पानी कम लेने की सलाह दी जाती है ।
- जब बहुत ज्यादा प्यास लगे, तब भी कम मात्रा में पानी पीना चाहिए अथवा मुँह में बर्फ का छोटा टुकड़ा रख्कार उसे चूसना चाहिए। जितना पानी रोज पीने की छूट दी गई हो, उतनी मात्रा में बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े चूसने से प्यास को बहुत संतुष्टि मिलती है।
- आहार में नमक की मात्रा कम करने से प्यास घटाई जा सकती है। जब मुँह सूखने लगे, तब पानी के कुल्ले करके मुँह को गीला करना चाहिए एवं पानी नहीं पीना चाहिए। च्यूइंगम चबाकर मुँह का सूखना कम किया जा सकता है।
- चाय पीने के लिए छोटा कम तथा पानी पीने के लिए छोटा गिलास उपयोग में लेना चाहिये।
- भोजन के बाद जब पानी पिया जाये, तभी दवा ले लेनी चाहिए, जिससे दवा लेते समय अलग से पानी नहीं पीना चाहिये ।
- डॉक्टरों द्वारा 24 घंटे में कुल कितना तरल पदार्थ (द्रव) लेना चाहिए, इसकी सूचना भी मरीज को दी जाती है। यह मात्रा केवल पानी ही नहीं है। इसमे पानी के अलावा चाय, दूध, दही, मट्ठा (छाछ), जूस, बर्फ, आइसक्रीम, शरबत, दाल का पानी इत्यादि सभी पेय पदार्थों का समावेश होता है। 24 घंटों में लिये जानेवाले पेय की गणना उपरोक्त सभी तरल पदार्थ एवं पानी की मात्रा को जोड़कर किया जाता है।
- मरीज को किसी कार्य में संलग्न रहना चाहिए। खाली निकम्मे बैठने से प्यास की इच्छा ज्यादा एवं बार-बार होती है।
- डायबिटीज के मरीजों के खून में गलूकोज (शर्करा) की मात्रा ज्यादा होने से प्यास ज्यादा लगती है। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को खुन में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रण में रखने से प्यास कम लगती है, जो पानी कम लेने में सहायक होती है।
- गर्मी के मौसम में प्यास बढ़ जाती है, अतः मरीज को ए.सी. या कूलर में रहना आवश्यक होता है।
सी. के. डी. के रोगी को तरल पदार्थों के सेवन को नियंत्रित करने के लिए क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
तरल पदार्थ की कमी से बचने के लिए तरल पदार्थ की मात्रा दर्ज करनी चाहिए और डॉक्टर की सलाह के अनुसार उसका पालन करना चाहिए। हर सी. के. डी. के मरीज के लिए तरल पदार्थ की मात्रा भिन्न-भिन्न हो सकती है और यह प्रत्येक रोग के पेशाब उत्पादन और तरल पदार्थ की स्थिति के आधार पर तय की जाती है।
मरीज नापकर उचित मात्रा में ही पानी / तरल पदार्थ ले सके इसके लिये कौन सी पद्धति अपनाने की सलाह दी जाती है?
- मरीज को जितना पानी लेने की सलाह दी गई हो, उतना पानी एक जग में रोज भर लेना चाहिए।
- जितनी मात्रा में मरीज कप, गिलास या कटोरी में पानी पिये उतना ही पानी जग में उस बर्तन की सहायता से निकालकर फेंक देना चाहिए
- मरीज को उतनी ही पानी मात्रा में तरल पदार्थ लेने की दूट दी जाती है, जिससे पूरे दिन में जग में भरा पानी खत्म हो जाए।
- दूसरे दिन फिर माप के अनुसार जग में पानी भर कर उतनी ही मात्रा में पानी लेने की छूट दी जाती है।
- इस प्रकार मरीज सरलता से डॉक्टर द्वारा बताई गई मात्रा में पानी और पेय पदार्थ ले सकता है।
किडनी फेल्योर के मरीजों को आहार में कम मात्रा में नमक (सोडियम) लेने की सलाह क्यों दी जाती है?
शरीर में सोडियम (नमक) पानी को और खून के दबाव को उचित मात्रा में कायम रखने में सहायक होता है। शरीर में सोडियम की उचित मात्रा का नियमन किडनी करती है जब किडनी की कार्यक्षमता में कमी होती है, तब शरीर से किडनी द्वारा ज्यादा सोडियम निकलना बंद हो जाता है और इसलिए शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ने लगती है। शरीर में ज्यादा सोडियम के कारण होनेवाली समस्याओं में प्यास ज्यादा लगना, सूजन बढ़ना, साँस फूलना, खून का दबाव बढ़ना इत्यादि का समावेश होता है। इन समस्याओं को रोकने अथवा कम करने के लिए किडनी फेल्योर के मरीजों के लिए नमक का उपयोग कम करना अनिवार्य है।
सोडियम और नमक में क्या अंतर है?
सोडियम और नमक दोनों को नियमित रूप से समानार्थ शब्द के रूप से इस्तेमाल किया जाता हैं। साधारण नमक या टेबल नमक सोडियम क्लोराइड है और इसमें 40 प्रतिशत सोडियम रहता है। हमारे आहार में सोडियम का प्रमुख स्त्रोत नमक है लेकिन नमक, सोडियम का एकमात्र स्त्रोत नहीं है उपर वर्णित कई खाद्य पदार्थों में सोडियम शामिल होता है पर वे स्वाद में खारे नहीं होते है। सोडियम इन यौगिकों में छुपा रहता है।
आहार में कितनी मात्रा में नमक होना चाहिए?
अपने देश में सामान्य व्यक्ति के आहार में पूरे दिन में लिए जानेवाले नमक की मात्रा 6 से 8 ग्राम तक होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों को डॉक्टर की सलाह के अनुसार नमक लेना चाहिए। अधिकांश उच्च रक्तचाप और सूजन वाले किडनी फेल्योर के मरीजों को रोज 3 ग्राम नमक लेने की सलाह दी जाती हैं।
किस आहार में नमक (सोडियम) की मात्रा ज्यादा होती है?
ज्यादा नमक (सोडियम) युक्त वाले आहार का विवरण:
- नमक, खाने का सोडा, चाट मसाला।
- पापड़, अचार, कचूमर, चटनी ।
- खाने का सोडा या बेकिंग पाउडरवाले खाद्य पदार्थ जेसे- बिस्किट, ब्रेड, केक, पीजा, गांठिया, पकौड़ा, ढोकला, डांडवा इत्यादि ।
- तैयार नास्ते जेसे नमकीन (सेव, चेवड़ा, चकरी, मठरी इत्यादि), वेफर्स, पॉपकार्न, नमक लगा मूंगफली का दाना, चना, काजू, पिस्ता वगैरह।
- तैयार मिलने वाला नमकीन मक्खन और चीज ।
- सॉस, कोर्नलेक्स, स्पेगेटी, मैक्रोनी वगैरह ।
- साग-सब्जी में मेथी, पालक, हरा धनियां बंदगोभी, फूलगोभी, मूली, चुकुन्दर (बीट) वगैरह।
- नमकीन लस्सी, मसाला सोडा, नींगू शरबत, नारियल का पानी ।
- दवायें- सोडियम बाइकार्बोनेट की गोलियाँ, एन्टासिड, लेकसेटिव वगैरह
- कलेजी, किडनी, भेजा, मटन ।
- शल्कोंवाली मछली और तेलवाली मछली जैसे- कोलंबी, करंगी, केकड़ा, बांगड़ा वगैरह और सूखी मछली।
खाने में सोडियम की मात्रा कम करने के उपाय
प्रतिदिन भोजन में नमक का कम प्रयोग करना तथा भोजन में नमक उपर से नहीं छिडकना चाहिये। यद्यपि श्रेष्ठ पद्धति तो बिना नमक के खाना बनाना है ऐसे खाने में मरीज डॉक्टर की सूचना अनुसार मात्रा में ही नमक अलग से डालें। इस विधि से निश्चित रूप से निर्धारित मात्रा में नमक लिया जा सकता है।
- खाने में रोटी, भाखरी, भात जैसी चीजों में नमक नहीं डालना चाहिए।
- पूर्व में बताई गई अधिक सोडियम की मात्रा वाली वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए अथवा कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिए ।
- ज्यादा सोडियम वाली साग-सब्जी को पानी से धोकर एवं उबालकर, उबला हुआ पानी फेंक देने से साग-सब्जी में सोडियम की मात्रा कम हो जाती है।
- कम नमक वाले आहार को स्वादिष्ट बनाने के लिए प्याज, लहसुन, नींबू, तेजपत्ता, इलायची, जीरा, कोकम, लौंग, दालचीनी, मिर्ची व केसर का उपयोग किया जा सकता है।
- नमक की जगह कम सोडियमवाला नमक (लोना) नहीं लेना चाहिए। लोना में पोटैशियम की मात्रा ज्यादा होने से वह किडनी फेल्योर वाले मरीजों के लिए जानलेवा हो सकता है।
- नरम (Soft) पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि पानी को नरम बनाने की प्रक्रिया में कैल्शियम की जगह सोडियम लगता है। रिवर्स ओसमोसिस की प्रक्रिया शुध्द पानी में सोडियम सहित सभी खनिजों को कम कर देती है अतः यह पीने के लिए उपयुक्त होता है। रेस्त्रां में खाते समय उन खाद्य सामग्री का चयन करें जिनमें सोडियम की मात्रा कम हो ।
किडनी फेल्योर के मरीजों को सामान्यतः आहार में कम पोटैशियम लेने की सलाह क्यों दी जाती है?
शरीर में हृदय और स्नायु के उचित रूप से कार्य के लिए पोटेशियम की सामान्य मात्रा जरूरी होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में खून में पोटैशियम बढ़ने का खतरा रहता है। क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज के खून में से किडनी द्वारा पौटेशियम को हटाना अपर्याप्त हो सकता है और इससे आगे चलकर खून में पौटेशियम की मात्रा बढ़ सकती है। इस परिस्थिति को “हाइपरकेलेमिया’ कहते हैं। हीमोडायलिसिस की तुलना में वे मरीज जो पेरिटोनियल डायलिसिस के दौरे से गुजर रहे हैं उन्हें हाइपरकेलेमिया का खतरा कम रहता है। दोनों समूहों में खतरा अलग-अलग होता है क्योंकि पेरिटोनियल डायलिसिस की प्रक्रिया लगातार होती हैं जबकि हीमोडायलिसिस रुक रुक कर होता है। खून में पोटैशियम की ज्यादा मात्रा हृदय और शरीर के स्नायुओं की कार्यक्षमता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। पोटैशियम की मात्रा ज्यादा बढ़ने से होनेवाले खतरों में ह्रदय की गति घटते घटते एकाएक रूक जाना और फेफड़ों के स्नायु काम नहीं कर सकने के कारण साँस का बंद हो जाना है। शरीर में पोटैशियम की मात्रा बढ़ने की समस्या जानलेवा साबित हो सकती है, फिर भी इसके कोई विशेष लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। इसलिए इसे ‘साइलेन्ट किलर’ कहते हैं।
खून मे सामान्यतः कितना पोटेशियम होता है?
यह मात्रा कितनी बढ़ने पर चिंताजनक होती है? सामान्यतः शरीर में पोटैशियम की मात्रा 3.5 से 5.0 mEq / L होती है। जब यह मात्रा 5 से 6 mEq/L हो जाये तो खाने पीने में सतर्कता जरूरी हो जाती है। जब यह 6.0 mEq / L से ज्यादा बढ़ती है, तब यह भयसूचक होती है और जब पोटैशियम की मात्रा 7 mEq/L से ज्यादा हो जाए, तो यह किसी भी समय जानलेवा हो सकती है।
पोटैशियम की मात्रा के अनुसार खाद्य पदार्थ का वर्गीकरण?
किडनी फेल्योर के मरीजों में, खून में पोटैशियम नहीं बढ़े, इसके लिए डॉक्टरों के बताये अनुसार आहार लेना चाहिए। पोटैशियम की मात्रा को ध्यान में रखते हुए खाद्य पदार्थ का वर्गीकरण तीन भाग में किया गया है। ज्यादा, मध्यम और कम पोटैशियमवाले खाद्य पदार्थ । सामान्य रूप से ज्यादा पोटैशियमवाले खाद्य पदार्थ पर निषेध, मध्यम पोटैशियमवाले खाद्य पदार्थ मर्यादित मात्रा में और कम पोटैशियमवाले खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है। 100 ग्राम खाद्य पदार्थ में पोटेशियम की मात्रा के आधार पर ज्यादा, मध्यम और कम पोटैशियमवाले आहार का वर्गीकरण नीचे दिया गया है :
1. ज्यादा पोटैशियम = 200 मि.ग्रा. से अधिक
2. मध्यम पोटैशियम =100-200 मि. ग्रा. के बीच
3. कम पोटैशियम = 0-100 मि. ग्रा
अधिक पोटैशियमवाले आहार
- फलः केला, चीकू, पका हुआ आम, मोसंबी, शरीफा, खरबूजा, अन्नानास, आँवला, जरदालू, पीच, आलू अमरूद, संतरा, पपीता, अनार,
- साग-सब्जी: अरबी के पत्ते, शकरकंद, सहजन की फली, हरा धनिया, सूजन, पालक, गुवार की फली, मशरूम, कद्दू और टमाटर.
- सुख मेवाः खजूर, किशमिश, काजू, बादाम, अंजीर, अखरोट.
- दालें: अरहर की दाल, मूंग की दाल, चना, चने की दाल, उड़द की दाल
- मसालेः सुखी मिर्च, धनिया, जीरा, मेंथी
- पेयः नारियल का पानी, ताजे फलों का रस, उबाला हुआ डिब्बाबंद गाढ़ा दूध (Condensed Milk), सूप, बोर्नबीटा, बीयर, ड्रिंकिंग चोकलेट, शराब (Wine), भैंस का दूध, गाय का दूध.
- अन्यः लोना साल्ट, चोकलेट, कैडबरी, चोकलेट केक, चोकलेट आइसक्रीम इत्यादि
मध्यक पोटैशियम वाले आहार
- फल: चेरी, अंगूर, नाशपाती, तरबूज, लीची.
- साग-सब्जी: बैंगन, बंदगोभी, गाजर, प्यास, मूली, करेला, भिण्डी, फूलगोभी, टमाटर, कच्चे आम, हरी मटर,
- अनाज: मैदा, ज्वार, पौआ (चिउडा), मक्का, गेहूं की सेव
- पेय (Drinks ): दही
कम पोटैशियम आहार
- फल: सेब, जामुन, बेर, निम्बू, अनानास और स्ट्रॉबेरी.
- साग-सब्जी : घीया, ककडी, अमियां (टिकोरा), तोरई, परवल, चुकंदर, मेथी की सब्जी, लहसुन
- अनाज: सूजी, चावल
- पेय: कॉफी, नींबू पानी, कोको कोला, फेंटा, लिम्का, सोडा
- अन्यः शहद, जायफल, राई, सोंठ, पुदीने के पत्ते, सिरका (Vinegar). लौंग, काली मिर्च.
भोजन में पौटेशियम कम करने के लिए व्यवहारिक सुझाव?
- जिसमे कम मात्रा में पौटेशियम हो ऐसे दल का सेवन कर सकते है।
- प्रतिदिन एक कप चाय या कॉफी लें ।
- जिन सब्जियों में पौटेशियम होता है उनकी मात्रा कम कर देनी चाहिए।
- नारियल पानी, फलों का रस और वह खाघ सामग्री जिसमें पौटेशियम की मात्रा ज्यादा हो उनका परहेज करना चाहिए। जहां तक हो सके वह खाद्य सामग्री चुनें जिसमें कम मात्रा में पौटेशियम हो ।
- डायलिसिस के पूर्व सी. के. डी. के मरीजों के लिए ही पौटेशियम का प्रतिबंध नहीं होता है, यह डायलिसिस की शुरुआत के बाद भी आवश्यक होता है।
साग-सब्जी में पाया जानेवाला पोटैशियम किस प्रकार कम किया जा सकता है?
- साग-सब्जी बारीक काटने के बाद उनके छोटे-छोटे टुकड़े कर एवं छिलकेवाली सब्जी (आलू सूरन इत्यादि) के छिलके निकाल लेना चाहिए।
- गुनगुने पानी में से धोकर साग सब्जी को गरम पानी में एक घंटे तक रखना चाहिए। पानी की मात्रा साग-सब्जी से 5 से 10 गुना ज्यादा होनी चाहिए ।
- दो घण्टे बाद, फिर से गुनगुने पानी में 2 से 3 बार सब्जी को धोकर, सब्जी को ज्यादा पानी डालकर उबालना चाहिए।
- जिस पानी में सब्जी उबाली गई हो, उस पानी को फेंक देना चाहिए और साब भाजी को स्वादानुसार बनाना चाहिए।
- इस प्रकार साग सब्जी में उपस्थित पोटैशियम की मात्रा को घटाया/ कम किया जा सकता है । परन्तु पोटैशियम को पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता है परन्तु पोटेशियम को पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता है। इसलिए ज्यादा पोटैशियम वाली साग सब्जी कम या बिल्कुल नहीं खाने की सलाह दी जाती है।
- इस तरह से बनाए गए खाने में पोटैशियम के साथ-साथ विटामिन्स भी नष्ट हो जाते हैं, इसके लिए डॉक्टर की सलाह लेकर विटामिन की गोली लेना जरूरी है।
किडनी फेल्योर के मरीजों को फॉस्फोरसवाला आहार क्यों कम लेना चाहिए?
- शरीर में फॉस्फोरस और कैल्सियम की सामान्य मात्रा हड्डियों के विकास, तंदुरूस्ती और मजबूती के लिए जरूरी होती है। सामान्यतः आहार में उपस्थित ज्यादा फॉस्फोरस को किडनी पेशाब के रास्ते बाहर निकाल कर उचित मात्रा में उसे खून में स्थिर रखती है।
- सामान्यतः खून में फॉस्फोरस की मात्रा 4.0 5.5 मि. ग्रा. प्रतिशत होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में ज्यादा फॉस्फोरस का पेशाब के साथ निष्कासन नहीं होने से उसकी मात्रा खून में बढ़ती जाती है। खून में उपस्थित फॉस्फोरस की अधिक मात्रा हड्डियों में से कैल्सियम खींच लेता है, जिससे हड्डियाँ कमजोर हो जाती है ।
- शरीर में फॉस्फोरस बढ़ने के कारण होनेवाली मुख्य समस्याओं में खुजली होना, स्नायु का कमजोर होना, हड्डियों का कमजोर होना और सख्त हो जाने के कारण फ्रैक्चर होने की संभावना का बढ़ना इत्यादि है।
किस आहार में ज्यादा फॉस्फोरस होने के कारण उसे कम लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए?
ज्यादा फॉस्फोरस वाले आहार का विवरण इस प्रकार है :
- दूध की बनी वस्तुएं पनीर आइसक्रीम मिल्कशेक, चॉकलेट। –
- काजू, बादाम, पिस्ता, अखरोट, सूखा नारियल ।
- शीतल पेय (Cold Drink ) – कोकाकोला, फैन्टा, माजा, फ्रूटी ।
- मूंगफली का दाना, गाजर, अरबी के पत्ते शकरकंद, मक्के के दाने, हरा मटर ।
उच्च विटामिन और फाइबर का सेवन
कम भूख लगने के कारण सी. के. डी. के रोगी आमतौर पर विटामिन की अपर्याप्त आपूर्ति की वजह से पीड़ित रहते हैं आहार पर एक प्रतिबंध रहता है ताकि किडनी की बीमारी न बढ़े डायलिसिस के दौरान कुछ विटामिन्स विशेष रूप से पानी में घुलनशील विटामिन B. विटामिन C और फोलिक एसिड लुप्त हो जाते हैं। अपर्याप्त सेवन एवं इन विटामिनों के नुकसान की भरपाई करने के लिए सी. के. डी. रोगियों को पानी में घुलनशील विटामिन्स और तत्वों के पूरक की आवश्यकता होती है। सी. के. डी. के मरीजों के लिए उच्च फाइबर का सेवन फायदेमंद है। इसलिए रोगियों को ताजी सब्जी और फल जिसमें विटामिन और फाइबर की मात्रा अधिक हो, लेने की सलाह दी जाती है पर उन फल और सब्जियों से जिनमें ज्यादा मात्रा में पौटेशियम हो, परहेज रखना चाहिए।
दैनिक आहार की रचना
किडनी फेल्योर के मरीजों को प्रतिदिन किस प्रकार का और कितनी मात्रा में आहार एवं पानी लेना चाहिए, यह चार्ट नेफ्रोलॉजिस्ट की सूचना के अनुसार डायटीशियन द्वारा किया जाता है । परन्तु आहार के लिए सामान्य सूचना इस प्रकार है :
- पानी और तरल पदार्थ:- डॉक्टर द्वारा दी गई सूचना के अनुसार इतनी ही मात्रा में पेय पदार्थ लेना चाहिए। रोज वजन करके चार्ट रखना चाहिये । यदि वजन में एकाएक बढ़ोत्तरी होने लगे, तो समझना चाहिए पानी लिया गया है।
- कार्बोहाइड्रेटस:- शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी मिले उसके लिए अनाज एवं दालों के साथ (यदि डायबिटीज नहीं हो, तो ) चीनी अथवा ग्लूकोज की अधिक मात्रावाले आहार का उपयोग किया जा सकता है।
- प्रोटीन:- प्रोटीन मुख्यतः दूध, दलहन, अनाज, अण्डा, मुर्गी में ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। जब डायलिसिस की जरूरत नहीं हो, उस अवस्था के किडनी फेल्योर के मरीजों को थोड़ा कम प्रोटीन (0.8 ग्राम / किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर ) लेने की सलाह दी जाती है। जबकि नियमित हीमोडायलिसिस एवं सी. ए. पी. डी. (C.A.P.D.) कराने वाले मरीजों में ज्यादा प्रोटीन लेना अत्यंत आवश्यक होता है सी. ए. पी. डी. का द्रव जब पेट से बाहर निकलता है तभी उस द्रव के साथ प्रोटीन निकल जाता है, जिससे यदि भोजन में ज्यादा प्रोटीन नहीं दिया जाये, तो शरीर में प्रोटीन कम हो जाता है, जो हानिकारक होता है।
- चर्बी वाले पदार्थ ( वसायुक्त पदार्थ):- चर्बी वाले पदार्थों को कम लेना चाहिए। घी, मक्खन इत्यादि खाने में कम लेना चाहिए। परन्तु इनको बिल्कुल बंद कर देना भी हानिकारक है। तेलों में सामान्यतः मूँगफली का तेल या सोयाबीन का तेल दोनों शरीर के लिए फायदेमंद हैं, फिर भी उन्हें कम मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है।
- नमक:- अधिकांश मरीजों को नमक कम लेने की सलाह दह जाती है। उपर से नमक नहीं छिड़कना चाहिये। खाने का सोडा-बेकिंग पावडर वाली वस्तुएं कम लेनी चाहिए अथवा नहीं लेनी चाहिए। नमक के बदले नमक और लोना (कम सोडियसम वाला नमक low sodium salt) कम लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए।
- अनाज:- अनाज में चावल या उससे बने पोहा ( चिवड़ा), मूरी (फरही) जैसी चीजों का उपयोग करना चाहिएं। हर रोज एक ही अनाज लेने की जगह गेहूँ, चांवल पोहा, साबूदाना, सूजी मैदा, ताजा मक्का, कार्नलेक्स इत्यादि चीजें ली जा सकती है। ज्वार, मकई तथा बाजरा कम लेना चाहिए।
- दालें:- अलग-अलग तरह की दालें सही मात्रा में ली जा सकती हैं, जिससे खाने में विविधता बनी रहती है। दाल के साथ पानी के होने से पानी की मात्रा कम लेनी चाहिए। जहाँ तक हो सके, दाल गाढ़ी लेनी चाहिए। दाल की मात्रा डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेनी चाहिए । दालों में से पोटैशियम कम करने के लिए उसे ज्यादार पानी से धोने के बाद गरम पानी मे भिंगोकर उस पानी को फेंक देना चाहिए। ज्यादा पानी में दाल को उबालने के बाद उबले पानी को फेंककर स्वादानुसार बनाना चाहिए। दाल और चांवल के स्थान पर उससे बनी खिचड़ी, डोसा वगैरह भी खाये जा सकते हैं।
- साग-सब्जी:- पूर्व में बताये अनुसार कम पोटेशियम वाली साग-सब्जी बिना किसी परेशानी के उपयोग की जा सकती है। ज्यादा पोटैशियम वाली साग सब्जी पूर्व में बताये अनुसार पोटैशियम की मात्रा कम करके ही बनाई जानी चाहिए तथा स्वाद के लिए दाल सब्जी में नींबू निचोड़ा जा सकता है।
- फल:- कम पोटैशियम वाले फल जैसे सेब, पपीता, अमरूद, बेर वगैरह दिन में एक बार से ज्यादा नहीं खाना चाहिए। डायलिसिस वाले दिन डायलिसिस से पहले कोई भी एक फल खया जा सकता है। नारियल का पानी या फलों का रस नहीं लेना चाहिए।
- दूध और उससे बनी वस्तुएं:- हर रोज 300 से 350 मिली लीटर दूध या दूध से बनी अन्य चीजें जैसे खीर, आइसक्रीम, दही, मट्ठा इत्यादि लिया जा सकता है। साथ ही पानी कम लेने के निर्देश को ध्यान में रखते हुए मट्टा कम मात्रा में लेना चाहिए।
- शीतल पेय:- पेप्सी, फेंटा, फ्रूटी जैसे शीतल पेय नहीं लेने चाहिए। फलों का रस एवं नारियल का पानी भी नहीं लेना चाहिए।
- सूखा मेवा:- सूखा मेवा, मूंगफली के दाने, तिल, हरा या सूखा नारियल नहीं लेना चाहिए।
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