दुनियाभर में डायलिसिस करानेवाले मरीजों का बड़ा समूह इस प्रकार का डायलिसिस कराते हैं। इस प्रकार के डायलिसिस में होमोडायलिसिस मशीन द्वारा खून को शुद्ध किया जाता है।
हीमोडायलिसिस किस प्रकार किया जाता है?
हीमोडायलिसिस, अस्पतालों में या डायालिसिस सेंटर में डॉक्टर, नर्स और डायलिसित तकनीशियन की देखरेख में किया जाता है। हीमोडायलिसिस मशीन के अंदर स्थित पम्प की मदद से शरीर में से 250-300 मि.ली. खून प्रति यूनिट शुद्ध करने के लिए कृत्रिम किडनी में भेजा जाता है खून का थक्का न बने, इसके लिए हीपेरिन नामक दवा का प्रयोग किया जाता है। कृत्रिम किडनी मरीज और हीमोडायलिसिस मशीन के बीच में रहकर खून का शुद्धीकरण का कार्य करती है। खून शुद्धीकरण के लिए हीमोडायलिसिस मशीन के अंदर नहीं जाता है। कृत्रिम किडनी में खून का शुद्धीकरण डायलिसिस मशीन द्वारा पहुँचाए गए खास प्रकार के द्रा (Dialysate) की मदद से होता है। शुद्ध किया गया खून फिर से शरीर में पहुँचाया जाता है। सामान्यत हीमोडायलिसिस की प्रक्रिया चार घंटे तक चलती हैं। इस बीच शरीर का सारा खून करीब 12 बार शुद्ध होता है। हीमोडायलिसिस की क्रिया में हमेशा खून बढ़ाने (blood transfusion) जरूरत पड़ती है, यह धारणा गलत है। हाँ, खून में यदि हीमोग्लोबिन की तात्रा कम हो गई हो तो ऐसी स्थिति में यदि डॉक्टर को आवश्यक लगे तभी खून दिया जाता है। प्रायः हफ्ते में तीन दिन हीमोडायलिसिस होते है और प्रत्येक सत्र लगभग चार घंटे का होता है।
शुद्धीकरण के लिए खून को कैसे शरीर से बाहर निकाला जाता है?
- डबल ल्यूनेन कोथेटर – आकस्मिक परिस्थितियों में पहली बार तत्काल हीमोडायलिसिस करने के लिए यह सबसे अधिक प्रचलित पद्धति है, जिसमें कैथेटर मोटी शिरा (नली) में डालकर तुरंत हीमोडायलिसिस किया जा सकता है। डायलिसिस करने के लिए शरीर के बाहर से डाली गयी नली द्वारा डायलिसिस की यह पध्दति लघु अवधि के उपयोग के लिए अभी तक आदर्श मानी गई है। यह केथेटर गले में, कंधे में या जाँघ में स्थित मोटी नस (internal jugular, subclavian or femoral vein) में रखा जाता है, जिसकी मदद से प्रत्येक मिनट में 200 से 400 मि. ली. खून शुद्धीकरण के लिए किया जाता है। केथेटर में संक्रमण होने के खतरे की वजह से अल्प अवधि ( 3-6 हप्ते) के लिए हीमोडायलिसिस करने के लिए यह पद्धति पसंद की जाती है। डायलिसिस के लिए दो प्रकार के वीनस कैथेटर होते है नलिका और गैर नलिका नलिका वाला कैथेटर एक महीने के लिए प्रयोग करने योग्य होता है और गैर नलिका का प्रयोग कुछ हते तक किया जा सकता है।
- ए. वी. फिस्च्यूला और – लंबी अवधि नहीनों सालों तक हीनोडायलिसिस करने के लिये सबसे ज्यादा उपयोग की जानेवाली यह पद्धति सुरक्षित होने के कारण उत्तम है। इस पद्धति में कलाई पर धमनी और शिरा को ऑपरेशन द्वारा जोड़ दिया जाता है। धमनी (Artery) में से अधिक मात्रा में दबाव के साथ आता हुआ खून शिरा (Vein) में जाता है, जिसके कारण हाथ की सभी नसें (शिराएँ) फूल जाती हैं। इस तरह नसों के फूलने में तीन से चार सप्ताह का समय लगता है उसके बाद ही नसों का उपयोग हीमोडायलिसिस के लिए किया जा सकता है। इसलिए पहली बार तुरंत हीमोडायलिसिस करने के लिए तुरंत फिस्च्युला बना कर उसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। इन फूली हुई नसों में दो अलग-अलग जगहों पर विशेष प्रकार की दो मोटी – सूई फिस्च्यूला नीडल (Fistula Needle) डाली जाती हैं। इन फिस्च्यूला नीडल की मदद से हीमोग्लोबिन के लिए खून बाहर निकाला जाता है और उसे शुद्ध करने के बाद शरीर में अंदर पहुँचाया जाता है। फिस्च्यूला की मदद से महीनों या सालों तक हीमोडायलिसिस किया जाता सकता है। फिरक्यूला किए गए हाथ से सभी हल्के दैनिक कार्य किए जा सकते हैं।
- ग्राफ्ट – जिन मरीजों के हाथ की नसों की स्थिति फिस्च्यूला के लिए योग्य नहीं हो उनके लिए ग्राफ्ट (Graft) का उपयोग किया जाता है। इस पद्धति में खास प्रकार के प्लास्टिक जैसे पदार्थ की बनी कृत्रिम नस की मदद से ऑपरेशन कर हाथ पैरों की मोटी धमनी और शिरा को जोड़ दिया जाता है। फिस्च्यूला नीडल को ग्राफ्ट में डालकर हीमोडायलिसिस के लिए खून लेने और वापस भेजने की क्रिया की जाती है। बहुत महंगी होने के कारण इस पद्धति का उपयोग बहुत कम मरीजों में किया जाता है। ए. बी. फिस्च्युला की तुलना में प्राकट में थक्का जमने और संक्रमण होने का जोखिम ज्यादा है एवं ए. वी. ग्राफ्ट लंबे समय तक कार्य नहीं कर सकता है।
हीमोडायलिसिस मशीन के क्या कार्य है?
- हीमोडायलिसिस मशीन का पम्प खून के शुद्धीकरण के लिए शरीर से खून लेकर और आवश्यकतानुसार करने का कार्य करती है। उसकी मात्रा कम या ज्यादा
- मशीन विशेष प्रकार का द्रव (स्लाइडेट) बनाकर कृत्रिम किडनी ( डायलाइजर) में भेती है। मशीन डायलाइजेट का तापमान, उसमें क्षार, बाइकार्बोनेट इत्यादि को उचित मात्रा में और उचित दबाव से कृत्रिम किडनी में भेजती है और खून से अनावश्यक कचरा दूर करने के बाद डायलाइजेट को बाहर निकाल देती है।
- किडनी फेल्योर ने शरीर में आई सूजन, अतिरिक्त पानी के जमा होने के कारण होती है डायलिसिस क्रिया में मशीन शरीर के ज्यादा पानी को निकाल देती है।
- मरीजों की सुरक्षा के लिए डायालिसिस मशीन में विभिन्न प्रकार के सुरक्षा उपकरण और अलार्म रहते हैं। जैसे डायालाइजर से रक्त स्त्राव का पता लगाने या खून के सर्किट में हवा की उपस्थिति की जानकारी के लिए हीमोडायलिसिस मशीन पर कम्यूटरीकृत स्क्रीन पर विभिन्न मापदण्डों का और विभिन्न अलार्मों का प्रदर्शन होता रहता है।
- डायलिसिस की निगरानी के अलावा मशीन के कार्य प्रदर्शन को विभिन्न प्रकार के अलार्म सुविधा, सटिकता और सुरक्षा प्रदान करते हैं ।
डायलाइजर (कृत्रिम किडनी) की रचना कैसी होती है?
हीमोडायलिसिस की प्रक्रिया ने डायालाइजर (कृत्रिम किडनी) एक फिल्टर है जहाँ रक्त की शुद्धि होती है डायलाइज़र लगभग 8 इंच लम्बा और 1.5 इंच व्यास का पारदर्शक प्लास्टिक पाइप का बना होता है, जिसमें 10,000 बाल जैसी पतली नलियाँ होती हैं। यह नलियाँ पतली परन्तु अंदर से खोखली होती है। यह नलियाँ खास तरह के प्लास्टिक के पारदर्शक झिल्ली (Semi Permeable Membrane) की बनी होती है। इन्हीं पतली नलियों के अन्दर से खून प्रवाहित होकर शुद्ध होता है। डायलाइजर के उपर तथा नीचे के भागों में यह पतली नलियाँ इकट्ठी होकर बड़ी नली बन जाती है, जिससे शरीर से खून लानेवाली और ले जाने वाली मोटी नलियां (Blood Tubings) जुड जाती हैं।
डायलाइजर (कृत्रिम किडनी) में खून का शुद्धीकरण
शरीर से शुद्धीकरण के लिए आनेवाला खून कृत्रिम किडनी में एक सिरे से अंदर जाकर हजारों पतली नलिकाओं में बंट जाता है। कृत्रिम किडनी में दूसरी तरफ से दबाव के साथ आने वाला डायलाइजर द्रव खून के शुद्धीकरण के लिए पतली नलियों के आसपास चारों ओर बंट जाता है। डायलाइजर में खून उपर से नीचे और डायलाइजेट द्रव नीचे से उपर एक साथ विपरीत दिशा में प्रवाहित होते हैं। हर मिनट लगभग 300 मि. लि. खून और 600 मि. लि. डायालिसिस घोल, डायालाइजर में लगातार विपरीत दिशा में बहता रहता है। खोखले फाइबर की पारदर्शक झिल्ली जो रक्त और डायालाइजेट द्रव ( dialysate) को अलग करती है, वह अपशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त तरल पदार्थ को रक्त से हटाकर डायालाइजेट कम्पार्टमेन्ट में डालकर उसे बाहर निकलती है। इस क्रिया में अर्धपारगम्य झिल्ली (Semi Permeable Membrane) की बनी पतली नलियों से खून में उपस्थित क्रिएटिनिन, यूरिया जैसे उत्सर्जी पदार्थ डायलाइजेट में मिल कर बाहर निकल जाते हैं। इस तरह कृत्रिम किडनी में एक सिरे से जाने वाला अशुद्ध खून दूसरे सिरे से निकलता है, तब वह साफ हुआ, शुद्ध खून होता है। डायलिसिस की क्रिया में, शरीर का पूरा खून लगभग बारह बार शुद्ध होता है। चार घंटे की डायलिसिस क्रिया के बाद खून में क्रिएटिनिन तथा यूरिया की मात्रा में उल्लेखनीय कमी होने से शरीर का खून शुद्ध हो जाता हैं।
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