Alfa Kidney Care
Alfa Kidney Care Alfa Kidney Care

Akhbar Nagar, Ahmedabad, Gujarat 380081, India

Mon – Sat : - 10:30 PM - 7:00 PM

Sun : - Closed

Alfa Kidney Care Alfa Kidney Care
  • Home
  • About Us
  • Dr. Ravi Bhadania
  • Services
    • Chronic Kidney Disease Treatment
    • Kidney Biopsy
    • Dialysis & Care
    • Kidney Friendly Diet
    • Kidney Stones
    • Urinary Tract Infection
    • Kidney Transplantation
    • Immunosuppressive Therapy
    • Know Your Kidney
    • Optimized Management
    • Counselling Regarding
    • Precise Diagnosis and Treatment
  • Procedure
  • Media Gallery
  • Our Blogs
  • Contact Us
  • Make an Appointment
Make an Appointment

Blog

  1. Alfa Kidney Care
  2. Blogs
  3. डायबिटीज और किडनी
डायबिटीज और किडनी

डायबिटीज और किडनी

January 24, 2024 by Dr. Ravi Bhadania

विश्व और समस्त भारत में बढ़ती आबादी और शहरीकरण के साथ-साथ डायबिटीज (मधुमेह) के रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है। डायबिटीज के मरीजों में क्रोनिक किडनी फेल्योर (डायबिटीक नेफ्रोपैथी) और पेशाब में संक्रमण के रोग होने की संभावना ज्यादा रहती है।

डायबिटिक किडनी डिजीज क्या है?

लम्बे समय से चली आ रही मधुमेह की बीमारी में लगातार उच्च शर्करा से किडनी की छोटी रक्त वाहिकाओं को काफी नुकसान होता है। शुरू में इस नुकसान के कारण पेशाब में प्रोटीन की मात्रा दिखाई देती है। जिसके फलस्वरूप उच्च रक्तचाप, शरीर में सूजन जैसे लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं जो धीरे-धीरे किडनी को ओर नुकसान पहुँचते हैं। किडनी की कार्य क्षमता में लगातार गिरावट होती जाती है और किडनी, विफलता की ओर अग्रसर हो जाती हैं। (एण्ड किडनी डिजीज ) । मधुमेह के कारण जो किडनी की समस्या होती है उसे डायबिटिक किडनी डिजीज कहते हैं। इसका मेडिकल शब्द डायबिटिक नेफ्रोपोथी है।

डायबिटीज के कारण होनेवाले किडनी फेल्योर के विषय में प्रत्येक मरीज को जानना क्यों जरूरी है?

  • क्रोनिक किडनी फेल्योर के विभिन्न कारणों में से सबसे महत्वपूर्ण कारण डायबिटीज है जो अत्यंत विकराल रूप से फैल रहा है।
  • डायलिसिस करा रहे क्रोनिक किडनी फेल्योर के 100 मरीजों में 35 से 40 मरीजों की किडनी खराब होने का कारण डायबिटीज होता हैं।
  • डायबिटीज के कारण मरीजों की किडनी पर हुए असर का जरूरी उपचार यदि जल्दी करा लिया जाए, तो भयंकर रोग किडनी फेल्योर को रोका जा सकता है।
  • डायबिटिक किडनी डिजीज से नीड़ित रोगियों में हृदय रोगों के होने एवं उनसे मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है।
  •  डायबिटीज के कारण किडनी खराब होना प्रारंभ होने के बाद यह रोग ठीक हो सके ऐसा संभव नहीं है । परन्तु शीघ्र उचित उपचार और परहेज द्वारा डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण जैसे महंगे और मुश्किल उपचार को काफी समय के लिए ( सालों तक भी) टाला जा सकता है।

डायबिटीज के मरीजों की किडनी खराब होने की संभावना कितनी होती है?

डायबिटीज के मरीजों को दो अलग-अलग भागों में बाँटा जा सकता है:

टाइप-1, अथवा इंसुलिन डिपेन्डेड डायबिटीज (IDDM Insulin Dependent Diabetes Mellitus) साधारणतः कम उम्र में होनेवाले इस प्रकार के डायबिटीज के उपचार में इंसुलिन की जरूरत पड़ती है। इस प्रकार के डायबिटीज में बहुत ज्यादा अर्थात् 30 से 35 प्रतिशत मरीजों की किडनी खराब होने की संभावना रहती है।

टाइप-2, अथवा नॉन- इंसुलिन डीपेन्डेन्ट डायबिटीज (N.I.D.D.M. Non Insulin Dependent Diabetes Mellitus) डायबिटीज के अधिकतर मरीज इसी प्रकार के होते हैं। वयस्क (Adults) मरीजों में इसी प्रकार की डायबिटीज होने की संभावनाएँ ज्यादा होती है, जिसे मुख्यतः दवा की मदद से नियंत्रण में लिया जा सकता है। इस प्रकार के डायबिटीज के मरीजों में 10 से 40 प्रतिशत मरीजों की किडनी खराब होने की संभावना रहती है।

मधुमेह के रोगी में डायाबिटिक किडनी डिजीज कब शुरू होती है?

मधुमेह के रोगी में डायबिटिक किडनी डिजीज होने में कई साल लग जाते हैं। इसलिए मधुमेह होने के बाद पहले 10 साल में यह बीमारी शायद ही कभी हो टाइप नधुमेह की शुरुआत के 15 से 20 साल के बाद किडनी की बीमारी के लक्षण प्रगट हो सकते है । मधुमेह की शुरुआत से ही सही उपचार से एक मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को शुरू के 25 वर्षों में डायबिटिक किडनी डिजीज होने का खतरा कम हो सकता है।

डायबिटीज किस प्रकार किडनी को नुकसान पहुँचा सकती है?

  • किडनी में सामान्यतः प्रत्येक मिनट में 1200 मिली लीटर खून प्रवाहित होकर शुद्ध होता है। वजन बढ़ने लगता है) और खून का दबाव बढ़ने लगता है। किडनी को अधिक नुकसान होने पर किडनी का शुद्धीकरण का कार्य कम होने लगता है और खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा बढ़ने लगती है। इस समय की गई खून की जाँच से क्रोनिक किडनी फेल्योर की पहचान होती है।
  • डायबिटीज नियंत्रण में नहीं होने के कारण किडनी में से प्रवाहित होकर जानेवाले खून की मात्रा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, जिससे किडनी को ज्यादा श्रम करना पड़ता है, जो नुकसानदायक है। यदि लम्बे समय तक किडनी को इसी तरह के नुकसान का सामना करना पड़े तो खून का दबाव बढ़ जाता है और किडनी को नुकसान भी पहुँच सकता है।
  • उच्च रक्तचाप खराब हो रही किडनी पर बोझ बन किडनी को ज्यादा कमजोर बना देता है।
  • किडनी के इस नुकसान से शुरू-शुरू में पेशाब में प्रोटीन जाने लगता है, फलस्वरूप शरीर में सूजन होने लगती है, (शरीर का वजन बढ़ने लगता है) और खून का दबाव बढ़ने लगता है। किडनी को अधिक नुकसान होने पर किडनी का शुद्धीकरण का कार्य कम होने लगता है और खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा बढ़ने लगती है। इस समय की गई खून की जाँच से क्रोनिक किडनी फेल्योर की पहचान होती है।

डायबिटीज के कारण किडनी पर होनेवाला असर कब और किस मरीज पर हो सकता है?

सामान्यतः डायबिटीज होने के सात से दस साल के बाद किडनी को नुकसान होने लगता है। डायबेटीज से पीड़ित किस मरीज की किडनी को नुकसान होनेवाला है यह जानना लगभग असंभव है। नीचे बताई गई परिस्थितियों में किडनी फेल्योर होने की संभावना ज्यादा होती है:

  • डायबिटीज कम उम्र में हुआ हो ।
  • लम्बे समय से डायबिटीज हो ।
  • उपचार में शुरू से ही इंसुलिन की जरूरत पड़ रही हो।
  • डायबिटीज और खून के दबाव पर नियंत्रण नहीं हो।
  • पेशाब में प्रोटीन का जाना।
  • पेशाब में प्रोटीन और बढ़ा हुआ सीरम लिमिङ डायबिटिक किडनी डिजीज के मुख्य लक्षण है जो नेशाब व रक्त जाँच में दिखाई पड़ते हैं।
  • मोटापा और धूम्रपान इसे और बढ़ा देते हैं।
  • डायबिटीज के कारण रोगी की आँखों ने कोई नुकसान हुआ हो (Diabetic Retinopathy) |
  • परिवारिक सदस्यों में डायबिटीज के कारण किडनी फेल्योर हुई हो।

डायबिटीज से किडनी को होने वाले नुकसान के लक्षण

  • प्रारंभिक अवस्था में किडनी के रोग के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। डॉक्टर द्वारा कराए गये पेशाब की जाँच में अल्ब्यूमिन (प्रोटीन) जाना, यह लिखनी के गंभीर रोग की पहली निशानी है।
  • धीरे-धीरे खून का दबाव बढ़ता है और साथ ही पैर और चेहरे पर सूजन आने लगती है।
  • डायबिटीज के लिए जरूरी दवा या इंसुलिन की मात्रा में क्रमशः कमी होने लगती है।
  • . पहले जितनी मात्रा से डायबिटीज काबू में नहीं रहता था बाद में उसी मात्रा लेने से डायबिटीज पर अच्छी तरह नियंत्रण रहता है।
  • बार-बार खून में चीनी की मात्रा कम होना ।
  • किडनी के ज्यादा खराब होने पर कई मरीजों में डायबिटीज की दवाई लिए बिना ही डायबिटीज नियंत्रण में रहता है। ऐसे कई मरीज, डायबिटीज खत्म हो गया है, यह सोच कर गर्व और खुशी का अनुभव करते हैं, पर दरअसल यह किडनी फेल्योर की चिन्ताजनक निशानी हो सकती है।
  • आँखों पर डायबिटीज का असर हो और इसके लिए मरीज़ द्वारा लेजर का उपचार कराने वाले प्रत्येक तीन मरीजों में से एक मरीज की किडनी भविष्य में तब होती देखी गई है।

किडनी खराब होने के साथ-साथ खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा भी बढ़ने लगती है। इसके साथ ही क्रोनिक किडनी फेल्योर के लक्षण दिखाई देने लगते हैं और उनमें समय के साथ-साथ क्रमशः वृद्धि होती जाती है ।

डायबिटीज द्वारा किडनी पर होनेवाले असर को किस प्रकार रोका जा सकता है?

  • डॉक्टर से नियमित चेकअप कराना।
  • डायबिटीज और हाई ब्लडप्रेशर पर नियंत्रण।
  • शीघ्र निदान के लिए उचित जांच कराना।
  • अन्य सुझाव- नियमित कसरत करना, तम्बाकू, गुटखा, पान, बीड़ी, सिगरेट तथा अल्कोहल (शराब) का सेवन नहीं करना ।
  • रक्त में शर्करा का अच्छा नियंत्रण अर्थात् एच. बी. 1 सी. (HbA1C) का स्तर 7% तक सीमित रखें।
  • चीनी और नमक का सेवन प्रतिबंधित रखें भोजन में प्रोटीन, असा और कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम रखें।
  •  एल्ब्यूमिन के परीक्षण के लिए पेशाब की जाँच और क्रीएटिनिन के परीक्षण के लिए रक्त की जाँच और eGFR की जाँच साल में एक बार अवश्य करायें जिससे आपकी किडनी की पूर्ण जाँच हो सके । नियमित रूप से कसरत करें एवं अपना आदर्श वजन बनाए रखें।

किडनी पर डायबिटीज का असर होने का शीघ्र निदान किस प्रकार किया जाता है?

श्रेष्ठ पद्धति

पेशाब में माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया (Microalbuminuria) की जाँच

सरल पद्धति

 तीन महीने में एक बार रक्तचाप की जाँच और पेशाब में एल्ब्यूमिन की जाँच कराना। यह सरल एवं कम खर्चे की ऐसी पद्धति है, जो हर जगह उपलब्ध है। कोई लक्षण न होने के बावजूद उच्च रक्तचाप और पेशाब में प्रोटीन का जाना डायबिटीज की किडनी पर असर का संकेत है। डायबिटिक किडनी डिजीज को पहचानने के लिए रक्त परीक्षण किए जाते हैं। प्रोटीन के लिए पेशाब का परीक्षण और क्रीएटिनिन एवं EGFR के लिए रक्त का परीक्षण जल्द से जल्द डायाबिटिक किडनी डिजीज का पता लगाने के लिए जो आदर्श परीक्षण है उसे माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया परीक्षण कहते हैं। इसे नीचे विस्तृत रूप से समझाया गया है।

माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया का पता लगाने के लिए डिपस्टिक द्वारा पेशाब में एल्बूमिन का परीक्षण किया जाता है। जब सीरम क्रीएटिनिन की मात्रा अधिक होती है, तब यह स्पष्ट है की किडनी की कार्यक्षमता कम है और मरीज डायाबिटिक किडनी डिजीज के डायाबिटिक किडनी डिजीज के अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा हैं डायबिटिक नेफ्रोपौथी | माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के पेशाब में आने के बाद ही होता है।

माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया और मैकरोएल्ब्यूमिन्यूरिया क्या है?

एल्ब्यूमिन्यूरिया का अर्थ है पेशाब में एल्ब्यूमिन (एक प्रकार का प्रोटीन) का उपस्थित होना । माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया का मतलब अल्प मात्रा में प्रोटीन का पेशाब में जाना ( 30 से 300 mg प्रतिदिन) और जिसे नियमित रूप से किये गए पेशाब परीक्षण से पता ही नहीं लगाया जा सकता है। इसका पता एक विशेष प्रकार के परीक्षण से होता है। मैकरोएल्ब्यूमिन्यूरिया का अर्थ है अधिक मात्रा में एल्ब्यूमिन का पेशाब में होना (एल्ब्यूमिन >300 मि.ग्राम/दिन) और इसका परीक्षण नियमित रूप से किये गए पेशाब के सामान्य परीक्षण से किया जाता है।

पेशाब में माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया की जाँच कराना क्यों श्रेष्ठ पद्धति है?

 यह कब और कैसे कराना चाहिए? किडनी पर डायबिटीज के प्रभाव का सबसे पहला निदान पेशाब में माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया की जाँच से किया जाता है। जाँच की यह श्रेष्ठ पद्धति है क्योंकि इस अवस्था में यदि निदान हो जाए, तो सघन उपचार से डायबिटीज द्वारा किडनी पर होनेवाले दुष्प्रभाव को रोका जा सकता है। यह जाँच टाईप-1 प्रकार के डायबिटीज (IDDM) के रोगियों में रोग के निदान के पाँच वर्ष के बाद प्रत्येक वर्ष कराने की सलाह दी जाती है। जबकि टाईप-2 प्रकार के डायबिटीज (NIDDM) में जब रोग का निदान हो जाए, तब से प्रारंभ करके प्रत्येक वर्ष यह जाँच कराने की सलाह दी जाती है । मानक डिपस्टिक द्वारा जो पेशाब का परीक्षण कहते हैं, उसकी अपेक्षा माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया परीक्षण से 5 साल या उससे भी पहले डायाबिटिक नेफ्रोपोथी का पता लगा सकता है। इसके पहले की बढ़े हुए सीरम क्रीएटिनिन की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुँच जाये, इस परीक्षण द्वारा जल्द उपचार शुरू हो सकता है। किडनी के लिए जोखिम होने के अलावा माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया, स्वतंत्र रूप से, मधुमेह के रोगियों को भविष्य ने हृदय संबंधी जटिलताओं के बढ़ने का संकेत भी देता है। माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के प्रारंभिक निदान करने से यह रोगी को इस खतरनाक बीमारी के बढ़ने के बारे में सचेत कर देती है। यह चिकित्सक को और अधिक गति से ऐसे रोगियों का इलाज करने का अवसर प्रदान करता है।

डायबिटिक किडनी डिजीज के मरीजों के लिए पेशाब में माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया परीक्षण कैसे किया जाता है?

डायबिटिक किडनी डिजीज की स्क्रीनिंग के लिए का परीक्षण पहले मानक पेशाब डिपस्टिक परीक्षण द्वारा किया जाता है। अगर परीक्षण में प्रोटीन की मात्रा नहीं होती है तब माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया का पता लगाने के लिए सूक्ष्म पेशाब परीक्षण किया जाता है। अगर नियमित पेशाब परीक्षण में एल्ब्यूमिन मौजूद है, तो माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के लिए परीक्षण करने की आवश्यकता नहीं होती है डायबिटिक नेफ्रोपौथी के निदान के लिए माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के लिए तीन परीक्षण में से दो का (3-6 महीने के अधिक के भीतर) सकारात्मक होना जरुरी है। पर इस दौरान पेशाब पथ में किसी भी प्रकार का संक्रमण नहीं होना चाहिए । माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया का पता लगाने के लिए तीन प्रमुख तरीके हैं :

  • स्पोट यूरिन टेस्ट: इस परीक्षण में एक अभिकनक पट्टी या टैबलेट का उपयोग किया जाता है। यह एक सरल परीक्षण है जिसे साधारण अभ्यास से किया जा सकता है यह कम खर्चीला भी होता है। चूंकि यह परीक्षण पूर्णतः प्रमाणित नहीं है, इसलिए अन्य परीक्षण से इसकी पुष्टि की जानी चाहिए
  • एल्ब्यूमिन क्रीएटिनिन रेश्यो: एल्ब्यूमिन – क्रीएटिनिन रेश्यो नाइकोएल्ब्यूमिन्यूरिया के परीक्षण करने के लिए सबसे भरोसेमंद, विशिष्ट और सही परीक्षण है। एल्ब्यूमिन क्रीएटिनिन रेश्यो 24 घंटे के पेशाब के एल्ब्यूमिन उत्सर्जन का अनुमान लगाती है। सुबह के पेशाब में 30-300 मि.ग्राम/ग्राम के बीच एल्ब्यूमिन – क्रीएटिनिन रेश्यों होने पर माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया (एल्ब्यूमिन – क्रीएटिनिन रेश्यो <30 मि.ग्राम/ग्राम सामान्य मूल्य है) का निदान हो सकता है। उपलब्धता और लागत की समस्या के कारण, माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के निदान के लिए मधुमेह के रोगियों का यह परीक्षण का उपयोग विकासशील देशों ने संभव है।
  • माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के लिए 24 घंटे का पेशाब इकट्टा करना: 24 घंटे की इकट्टा की हुई पेशाब में 30 से 300 मि.ग्राम एल्ब्यूमिन, माइक्रोएल्ब्यूनिन्यूरण के होने का संकेत देता है। हालांकि माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के निदान के लिए यह एक मानक तरीका है, पर यह कुछ कष्टकारक है। परीक्षण की सटिकता में इसका कम योगदान रहता है।

डायबिटिक किडनी डिजीज के निदान में मानक पेशाब डिपस्टिक परीक्षण कैसे मदद करता है?

पेशाब में प्रोटीन का पता लगाने के लिए सबसे व्यापक और नियमित तोर पर इस्तेमाल की जाने वाली विधि हैं मानक पेशाब डिपस्टिक परीक्षण | यह परीक्षण पेशाब ने प्रोटीन की अल्पतन मात्रा जिसे ट्रेस कहते हैं से लेकर अत्याधिक मात्रा (++++) तक माप लेता है। मधुमेह के रोगियों में मानक पेशाब डिपस्टिक परीक्षण, नैकरोएल्ब्यूमिन्यूरिया का पता लगाने के लिए एक आसान और त्वरित तरीका है (पेशाब में एल्ब्यूमिन 300 मि. ग्राम / दिन या ज्यादा) पेशाब में मैकरोएल्ब्यूमिन्यूरिया की उपस्थिति किडनी की बीमारी का प्रत्यक्ष रूप से चौथा स्तर दर्शाता है। डायबिटिक किडनी डिजीज के बढ़ते क्रम में मैकरोएल्ब्यूमिन्यूरिया, माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया का अनुसरण करता है।

डायबिटिक किडनी डिजीज का तीसरा चरण

आमतौर पर तीसरे चरण बाद किडनी की और अधिक गंभीर क्षति हो जाती है। माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया का पता लगाने से डायाबिटिक किडनी डिजीज के मरीज की पहचान जल्दी हो जाती है पर विकासशील देशों में इसकी लागत और अनुपलब्धता, इसके उपयोग को सीमित करती है। एसी परिस्थिति में मैकरोएल्ब्यूमिन्यूरिया का निदान करने के लिए पेशाब डिपस्टिक परीक्षण, डायबिटिक डिजीज के लिए अगला सबसे अच्छा नैदानिक विकल्प है। यूरिन डिपस्टिक परीक्षण, एक सरल, सस्ती आसानी से उपलब्ध विधि है। यह छोटे केन्द्रों में भी की जा सकती है। इसलिए डायाबिटिक किडनी डिजीज की बड़े पैमाने पर जाँच के लिए यह एक आदर्श और व्यवहारिक विकल्प है। डायबिटिक किडनी डिजीज के इस स्तर तक भी उचित उपचार किया जाना फायदेमंद है क्योंकि इसके फलस्वरूप डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता को विलंबित किया जा सकता है।

डायबिटीज का किडनी पर होनेवाले प्रभाव का उपचार

  • डायबिटीज पर हमेशा उचित नियंत्रण बनाये रखना ।
  • सतर्कतापूर्वक हमेशा के लिए उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में रखना, प्रतिदिन ब्लडप्रेशर मापकर उसे लिखकर रखना चाहिए। खून का दबाव 130/80 से बड़े नहीं, यह किडनी की कार्यक्षमता को स्थिर बनाये रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपचार है।
  • A.C.E.I. और A.R.B. ग्रुप की दवाओं को शुरूआत में इस्तेमाल किया जाये, तो यह दवा खून के दबाव को घटाने के साथ-साथ किडनी को होनेवाले नुकसान को कम करने में भी सहायता करती है।
  • सूजन घटाने के लिए डाइटूरेटिक्स दवा और खाने में नमक और पानी कम लेने की सलाह दी जाती है ।
  • . जब खून में यूरिया और क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़ जाती है, तब क्रोनिक किडनी फेल्योर के उपचार के विषय में जो चर्चा की गई है, वे सभी उपचार कराने की मरीज को जरूरत पड़ती है।
  • . किडनी डिजीज के बाद डायाबिटीज की दवा में जरुरी परिवर्तन सिर्फ खून में शक्कर की जाँच की रिपोर्ट के आधार पर ही करना चाहिए। केवल पेशाब में शक्कर की रिपोर्ट के आधार पर दवा में परिवर्तन नहीं करना चाहिए।
  • किडनी डिजीज के बाद साधारणतः डायाबिटीज की दवा की मात्रा को कम करने की जरूरत पड़ती है।
  • . डायबिटीज के लिए लंबे समय की जगह कम समय तक प्रभाव करने वाली दवा को पसंद किया जाता है। बहुत अच्छे नियंत्रण के लिए डॉक्टर ज्यादातर मरीजों में इन्सुलिन इस्तेमाल करना पसंद करते हैं।
  • बायगुएनाइड्स (मेटफॉर्मोन) के रूप में जानी जानेवाली दवा किडनी फेल्योर के रोगियों के लिए खतरनाक होने के कारण बंद कर दी जाती है।
  • वे कारण जिनसे हृदय को किसी भी प्रकार का खतरा उत्पन्न हो उनका गंभीरता से मूल्यांकन करें जैसे धूम्रपान, उच्च रक्तचाप उच्च रक्त शर्करा, रक्त में वसा की मात्रा में वृद्धि आदि ।
  • .किडनी जब पूरी तरह काम करना बंद कर देती है, तब दवा लेने के बावजूद भी मरीज की तकलीफ बढ़ती जाती है। इस हालत में डायलिसिस अथवा किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है।

डायबिटिक किडनी डिजीज की बीमारी वाले रोगी को कब चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए?

मधुमेह के वे मरीज जिनके पेशाब परीक्षण में माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया पाया जाता है उन्हें किडनी रोग विशेषज्ञ के पास भेजा जाना चाहिए। डायबिटिक किडनी डिजीज के रोगी को डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए यदि

  • अप्रत्याशित रूप से बजन ने वृद्धि, पेशाब की मात्रा में उल्लेखनीय कमी, चेहरे और पैर में सूजन में वृद्धि या साँस लेने में तकलीफ हो।
  • छाती में दर्द, पूर्व से मौजूद उच्च रक्तचाप में ओर वृद्धि, हृदय गति में असामान्यताएँ हों।
  • अत्यधिक कमजोरी, भूख में कमी, उल्टी और शरीर में पीलापन होना आदि ।
  • लगातार बुखार, ठंड लगना, पेशाब के दौरान जलन या दर्द, पेशाब में रक्त या पेशाब में मवाद जाना ।
  • बार-बार हाइपोग्लाइसिनिया होना अर्थात रक्त में शर्करा का स्तर अत्यधिक कम होना ।
  • इंसुलिन या मधुमेह की दवाओं की आवश्यकता में कमी होना।
  • भम्र, उनींदापन या शरीर में ऐंठन होना आदि।

इस तरह के विषयों के बारे में अधिक जानने के लिए संपर्क करें: Alfa Kidney Care

Tags: Diabetes and kidneyDiabetes and kidney in hindidiabetic kidney diseaseWhat is diabetic kidney disease
  • Share
  • Tweet
  • Linkedin

Post navigation

Previous
Previous post:

डायलिसिस का कार्य और डायलिसिस के प्रकार

Next
Next post:

पथरी क्या है? कारण, लक्षण, उपचार

Related Posts
Understanding Kidney Failure: Causes, Symptoms, and Treatment Guide
Understanding Kidney Failure: Causes, Symptoms, and Treatment Guide
November 22, 2023 by Dr. Ravi Bhadania

Though the main function of your kidney is to remove waste products from your blood, the ancillary effects of this...

Diabetic Nephropathy: Causes, Symptoms, and Treatment
Diabetic Nephropathy: Causes, Symptoms, and Treatment
October 22, 2024 by Dr. Ravi Bhadania

Diabetic nephropathy is a serious complication of diabetes that affects the kidneys. Given that diabetes is on the rise, it...

Leave a Comment Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Add Comment *

Name *

Email *

Website

Categories
  • Blogs (139)
  • Uncategorized (1)
Popular Posts
  • How Sleep Impacts Your Kidneys
    How Sleep Impacts Your Kidneys: What You Didn’t Know

    September 4, 2025

  • What is Kidney Stent Surgery
    What is Kidney Stent Surgery?

    August 21, 2025

  • Renal Concretions Kidney Stones
    Renal Concretions (Kidney Stones) – Types, Causes, Symptoms & Treatment

    August 20, 2025

Alfa Kidney care

Alfa Kidney Care is one of the leading kidney specialty and nephrology hospitals in Ahmedabad.

Our Location

707-710, Centrum Heights, Akhbarnagar Circle, Nava Vadaj, Ahmedabad, Gujarat 380013, India

E: rpbhadania@gmail.com

+91 94849 93617

Opening Hours

Mon - Sat - 10:30 PM - 7:00 PM

Sun - Closed

Emergency Cases
+91 94849 93617

Best Nephrologist in Ahmedabad

© 2023 Alfa Kidney Care. All Rights Reserved